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रावण का पुतला तो फूंक दिया,राक्षसी वृति को कौन फूंकेगा

डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
कोटा(राजस्थान)
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विजया दशमी विशेष………….

सदियों से हम बुराई और राक्षसी वृति के प्रतीक रावण के पुतले का कभी वध कर कभी फूंक कर बुराई का अंत कर दशहरा मनाते आ रहे हैं। रावण का पुतला फूंकना तो बुराई के अंत का प्रतीक मात्र है। दिन-ब-दिन समाज में सुरसा के मुँह की तरह बढ़ रही राक्षसी वृति का पुतला कौन फूंकेगा ? क्या हमें दशहरे पर इस पर विचार नहीं करना चाहिए। क्रोध,छल,कपट,कलह,द्वेष,अत्याचार,अनाचार,अपहरण,अबोध बालिकाओं के प्रति अमानवीय व्यवहार, हत्या आदि राक्षसी वृतियां जिस तेजी से निरन्तर बढ़ रही हैं,इसके जिम्मेदार कौन है,किसका पुतला फूंकें ?
आज समाज में जिस प्रकार इन राक्षसी वृत्तियों ने हिंसक और विकराल रूप धारण कर लिया है,उन्हें देख कर रावण जिंदा होता तो वह भी शर्मसार हो जाता। रावण ने अपनी बहन सूर्पनाखा की नाक काटने मात्र से ही पहले तो छल से सीता का हरण कर लिया,फिर उस पर मुग्ध हो कर अपनी भार्या बनाने का कुप्रयास किया। पर स्त्री के मोहपाश में ऐसा कामान्ध हो गया कि,सबकी धर्म संगत सलाह व सुझाव को दरकिनार करता रहा और राम से बेर ले बैठा। इस निंदनीय कृत्य का एक उजला पहलू भी है कि रावण ने कभी सीता के साथ किसी किस्म का निंदनीय व्यवहार या जबरदस्ती नहीं की। उस काल के रावण की राक्षसी वृति की जगह आज को देखें तो अपने-आप पर ग्लानि नहीं होनी चाहिए क्या ? जिस प्रकार का वीभत्स रूप सामने आ रहा है,यह बताने को पर्याप्त है कि किस प्रकार के राक्षस बनते जा रहे हैं हम।
रावण के अपराध के लिए तो भगवान राम ने उसका वध कर बुराई,अधर्म का,अहम्,अहंकार और पाप का अंत कर दिया। जब हज़ारों वर्ष पूर्व रावण और बुराइयों का अंत हो गया तो फिर कैसे समाज में फिर से रावण और राक्षसी वृतियाँ पनप गई ? अब कौन करेगा इनका अंत ? दृष्टांत बताते हैं कि आज के रावणों ने समाज को इतना कलुषित कर दिया हैं कि,इनके अंत होने का कोई ओर-छोर ही नज़र नहीं आता है।
अबोध बच्चियों,किशोरियों,नवयौवनाओं,विवाहिता का अपहरण कर सामूहिक बलात्कार करना,मार-पीट करना,तेजाब से मुँह जला देना,हत्या कर फेंक देना,विधवा और बड़ी उम्र की महिलाओं तक से बलात्कार करना,अश्लील वीडियो बना कर,डरा-धमका कर बार-बार दुष्कर्म करना। बलात्कार के राक्षस ने तो पवित्र रिश्तों को भी तार-तार कर दिया,जब एक भाई का अपनी ही सगी या चचेरी बहन से,देवर का माँ समान भाभी से और तो और पिता का पुत्री से बलात्कार की घटनाएँ मीडिया की सुर्खियां बनती हैं। मानसिक विकृति,कलुषित भावना के साथ दुश्मन से बदला लेने का शस्त्र बन चुका है बलात्कार।
आज कन्या भ्रूण हत्या,दहेज,महिलाओं के प्रति क्रूरता,रिश्वतखोरी,सायबर अपराध आदि मानवीय एवं सामाजिक बुराइयों और अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। पुरुष प्रधान समाज में पहले तो कन्या होने के बाद हत्या की जाती थी,परंतु हम तो एक कदम आगे बढ़ कर गर्भ में ही कन्या की हत्या का अपराध करने लगे हैं।
मिलावटखोर खाद्य पदार्थो में मिलावट कर नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर आर्थिक अपराध करते हैं। पद,ओहदा सेवा के लिए कम,निजी स्वार्थ के लिए कमाई का जरिया बन कर रिश्वतखोरी का बाजार गर्म करता हैं और भ्रष्टाचार को जन्म देता है।
समाज में व्याप्त ऐसी कई बुराइयों के पीछे हमारा लालच,लोभ,मोह,मानसिक मनोवृति,मनोभावनाएँ आदि ही प्रमुख कारण हैं,जिनसे उपजी राक्षसी वृति के लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं कोई दूसरा नहीं। अब राम कहाँ से आएंगे इन पापों,पापियों और बुराइयों का अंत करने के लिए।
हमें स्वयं ही अपने मन के रावण को मारना होगा। मनोवृतियों और सोच को बदलना होगा। यह हमें ही सोचना होगा कि हम कैसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं।
हमें सामाजिक आदर्शों,मूल्यों,नैतिकता के सिद्धांतों पर स्वयं भी चलना होगा और नई पीढ़ी को भी इसके लिए मार्ग दर्शन देना होगा। तिरोहित ही चुके नैतिक शिक्षा के मूल्यों को पहले घर से शुरू करना होगा। माता-पिता जो अपनी भूमिका भूल गए हैं,जिससे बच्चें प्रारम्भ से ही नैतिक आदर्श पर चलने के लिए तैयार होते थे,को फिर से जागना होगा।
इन वृत्तियों पर अंकुश लगाने के लिए बने सरकारी कानून को भी प्रभावी बनाना होगा,जिससे उनका मखौल न बनें। अपराधी नियमों के लचीलेपन का लाभ उठा कर सरेआम खुले घूमते हैं, उन्हें किसी का डर नहीं,उन्हें देख कर और रावण पैदा होते हैं। समाज में बढ़ते रावणों और आसुरी वृत्तियों का अंत करने के लिए हमें जागरूक होना होगा,बच्चों में संस्कार पैदा करने होंगे,नियम ज्यादा कठोर बनाने होंगे,सख्ती से इनकी पालना पर जोर देना होगा एवं मीडिया को जागरूकता का माहौल बनाने में आगे आना होगा। मन के रावण को मारने से ही कुछ बात बनेगी। आइए,दशहरे पर इस बार मन के रावण को मारने का संकल्प लेंl

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