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नव वर्ष नूतन काश

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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लाई थी दामन भर कैसी-कैसी सौगात,
जा रही पलक झुकाए वो उदास-उदास
वो एक दिसम्बर जनवरी दे गई थी,
ये एक जनवरी दिसम्बर ले गई
उँह! रहने दो आना-जाना,
खाली हाथों का एहसास
दूरी और आस-पास,
नव वर्ष नूतन काश।

गमन कदम गलीचे खिंचे आते बिछे कलियाँ,
देख हुए मन ‘पत्थर’ कैसी है ये दुनिया
माली भी हरे-हरे को ही सींचते,
सूखे बिरवा जड़ से है खिंचते
उँह! रहने दो ये पाना-खोना,
नहीं दुर्गंध ना ही सुवास
खुशबू बस है आभास,
वन वर्ष नूतन काश।

साधन कारण के सुख-दु:ख कारक नहीं होते,
मन सोचे कहकहे मन ही नैन भिगोते
कुछ कदम चले डगर तब ही जाना,
छोटी-सी जीवन सफर है माना
उँह! क्या नया क्या पुराना,
छूटा कडू मिला वो खास।
कीमती है चलती साँस,
नव वर्ष नूतन काश॥

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