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अब अदालत से ही आशा

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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मुद्दा ‘नागरिक संशोधन कानून’……………….
संसद ने किसी कानून को स्पष्ट बहुमत से पारित किया हो और उसके खिलाफ इतना जबर्दस्त आंदोलन चल पड़ा हो,ऐसा स्वतंत्र भारत के इतिहास में कम ही हुआ है। ये तो नरेंद्र मोदी की किस्मत है कि इस समय देश में कोई अखिल भारतीय नेता नहीं है,वरना इस सरकार को लेने के देने पड़ जाते। इस नए नागरिकता कानून को पिछले हफ्ते तक सिर्फ मुस्लिम-विरोधी बताया जा रहा था,लेकिन मालूम पड़ रहा है कि बंगाल और पूर्वोत्तर के सभी प्रांतों के हिंदू लोग लट्ठ लेकर इसके पीछे पड़ गए हैं। देश के गैर-भाजपाई राज्यों के कई मुख्यमंत्रियों ने कह दिया है कि इस कानून को हम अपने प्रदेशों में लागू नहीं करेंगे। देश के १६ प्रांतों में गैर-भाजपाई मुख्यमंत्री हैं,तो क्या केन्द्र सरकार इन मुख्यमंत्रियों को बर्खास्त करेगी ? बिहार के नीतीश कुमार की सरकार,जो भाजपा के समर्थन से चल रही है,उसने भी हाथ ऊंचे कर दिए हैं। इस समय देश जिस भयंकर आर्थिक खाई की तरफ बढ़ता जा रहा है,उसका इलाज करने की बजाय केन्द्र सरकार ने यह फिजूल का शोशा छोड़ दिया है। देश का सकल उत्पाद (जीडीपी) गिरता जा रहा है,मंहगाई बढ़ती जा रही है,बेरोजगारी बेलगाम हो रही है और सभी दलों के नेता इस फर्जी मुद्दे पर आपस में भिड़ रहे हैं। सरकार ने इस फर्जी मुद्दे को तूल देकर अफगानिस्तान,पाकिस्तान और बांग्लादेश को तो एक मंच पर ला ही दिया है,वह भारत के सभी विरोधी दलों को भी एकजुट होने का बहाना दे रही है। सर्वोच्च न्यायालय में इस नागरिकता कानून को रद्द करवाने के लिए दर्जनों याचिकाएं रोज़ लग रही हैं। यह तो स्पष्ट है कि इस सरकार के पास न तो इतना विवेक है और न ही आत्म-विश्वास कि वह इस कानून को वापस ले ले। इस सरकार की इज्जत बचाने का काम अब सिर्फ न्यायपालिका के जिम्मे है। उसी के हाथ में है कि दल-दल में फंसी भाजपा सरकार को वह किसी तरह से बाहर निकाले। यह कानून ऐसा है,जो भाजपा के माथे पर सांप्रदायिकता का काला टीका तो जड़ ही देता है,भारत को भी बदनाम करता है। यह कानून सिर्फ मुस्लिम-विरोधी होता तो पूर्वोत्तर भारत के हिंदू इसका विरोध क्यों कर रहे हैं ? यह वास्तव में इंसानियत-विरोधी है। कोई भी इंसान किसी भी जाति,धर्म,वंश या रंग का हो और यदि वह पीड़ित है तो उसे शरण देना किसी भी सभ्य देश का कर्तव्य है, लेकिन हर गैर-मुस्लिम को पीड़ित मान लेना कहां की बुद्धिमानी है ?

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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