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गीत को जीते रहे

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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आचमन की तरह जो पीते रहे हम,ज़िन्दगी भर गीत को जीते रहे हम।
पालने से गीत का संग,मातु के वात्सल्य में,माँ क्षीर संग पीते रहे हम।

शब्द पहला गुनगुनाया,माँ को माँ कह कर सुनाया,
माँ ने अतिशय प्रीति से पुचकार सीने से लगाया।
मेरे होने से मिला था मान माँ का,और मुझे त्रिभुवन मिला,
हम मिले दोनों,पिता की नाव को खेते रहे हम।

इक नया परिवार सर्जन हो चला तब,माँ का आगम जब हुआ,और आ गया मैं,
हाथ की मुठ्ठी बँधी मेरी,लिये तक़दीर अपनी आये,सबको भा गया मैं।
आसमां से अनवरत पहरा बना मुझ पर रहा,दैव ने मानव सदृश भेजा किसी को,
माँ मिली स्वर्णिम सदृश संसार ये,
मुझको मिला,मैं न रोया नेह विह्वल,छद्म से रीते रहे हम।

आश जागी जीव आगम जब हुआ परिवेश में,मान्यताओं के मुताबिक,संस्कृत करते रहे,
बड़भाग ये स्नेह सर्जन भी हुआ,
आगम मेरा अनुकूल हिय में प्राण हम भरते रहे।
वैभवी परिवेश लेकिन बुद्ध सम हम सोचते धनवान कुछ बेहद यहाँ कुछ ग़रीबी में जियें,
बात दिल पर आ गई हम खोजने तब चल पड़े,और खोज उनके दु:ख भी हम सीते रहे।

चैन से संसार अपने सुख से सुखमय की करे अनुभूति ये,दु:ख गैर का दिखता नहीं,
मन में जगी ये भावना,हर ब्यक्ति की है कामना,सुखमय भरा परिवार प्रभु लिखता नहीं।
यह देख आहत भी हुआ जब इक नियंता,फिर भला असमान क्यों परिवेश है।
यह सोच विह्वल मन हुआ,परदु:ख
मिटाने की लिये उर भावना हम ज़िन्दगी जीते रहेll

परिचय–प्रदीपमणि तिवारी का लेखन में उपनाम `ध्रुव भोपाली` हैl आपका कर्मस्थल और निवास भोपाल (मध्यप्रदेश)हैl आजीविका के लिए आप भोपाल स्थित मंत्रालय में सहायक के रुप में कार्यरत हैंl लेखन में सब रस के कवि-शायर-लेखक होकर हास्य व व्यंग्य पर कलम अधिक चलाते हैंl इनकी ४ पुस्तक प्रकाशित हो चुकी हैंl गत वर्षों में आपने अनेक अंतर्राज्यीय साहित्यिक यात्राएँ की हैं। म.प्र.व अन्य राज्य की संस्थाओं द्वारा आपको अनेक मानद सम्मान दिए जा चुके हैं। बाल साहित्यकार एवं साहित्य के क्षेत्र में चर्चित तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन केन्द्र भोपाल से अनुबंधित कलाकार श्री तिवारी गत १२ वर्ष से एक साहित्यिक संस्था का संचालन कर रहे हैं। आप पत्र-पत्रिका के संपादन में रत होकर प्रखर मंच संचालक भी हैं।

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