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परिंदों का दर्द

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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दो चिड़िया एक-दूसरे को अपनी पीड़ा का बखान कर रहीं थीं। एक बोली, -“बहन इतनी भीषण गर्मी पड़ रही है। एक बूँद पानी भी नहीं मिलता,जिससे हमारी प्यास,कुछ तो मिट सके। इंसान अपने नलों की टोंटी भी मजबूती से लगाते हैं। उससे भी पानी का रिसाव नहीं होता। सभी घरों में यही हाल है। गड्ढे,पोखर भी सूख गए हैं।”
दूसरी चिड़िया बोली,-“पहले तो घर-घर में,मिट्टी का पात्र पानी से भरकर रखा जाता था,जिससे परिंदे अपनी प्यास बुझा सकते थे,अब वह भी मयस्सर नहीं। इंसान का दिल भी सूखे कुएं की तरह सूख गया है। उसके दिल में किंचित भी नमी नहीं है।”
पहली चिड़िया ने कहा,-इंसान की इंसानियत कैसे लुप्त हो गयी है,इसका उदाहरण सुनो। मेरे पड़ोस की एक बहन का आँखों-देखा हाल सुनाती हूँ,-उसे विद्युत पोल का करंट लगा। वह एक घर के सामने गिर गयी और तड़पने लगी। सुबह का वक्त था। उस घर की महिला आयी तथा घर के सामने झाडू लगाते समय,उस बहन को भी कचरे के साथ झाडू लगाती रही, यह सोचकर कि वह मर चुकी है। उस बहन ने तड़प-तड़प कर अपनी जान दे दी। वह महिला चाहती तो उसको पानी के छींटे मारकर जीवन देने का प्रयास कर सकती थी। क्रूरता की भी हद होती है। ऐसा व्यवहार एक मरणासन्न परिंदे के साथ,क्या इंसान की मृत्यु के समय उसके मुख में डाले जाने वाला गंगाजल, इसका इंसाफ दिला पायेगा ?

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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