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प्रहलाद का लाग राम रटना

डॉ.अर्चना मिश्रा शुक्ला
कानपुर (उत्तरप्रदेश)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

विष्णु पुराण की गाथा ले,
संक्षिप्त कथा मैं कहती हूँ।
अत्याचारी हिरण्यकश्यप,
वरदान प्राप्त ब्रम्हा से कर
संसार नहीं जीवों पर,
हर अस्त्र-शस्त्र नभचर में वह
जलचर में वह थलचर में वह,
दिन-रात सभी पर भारी था।
वरदान प्राप्त वह बेलगाम,
उच्छश्रृंखल,तानाशाही था
स्वच्छन्द,निरंकुश राज्य करे,
वह बाप बना ऐसे सुत का
जो विष्णु का परम उपासक था।
प्रहलाद जो नाम मिला उसको,
पुलकित करता,हरषित करता
आल्हादित वह सबको करता,
आनन्द,प्रसन्न हृदय में भरा
वह विष्णु भक्त एक बालक था।
वह राम रटन करता रहता,
हर रोज सिखाए हिरण्यकश्यप
तुम त्याग करो हर राम कथा,
आदेश तुम्हें अब देता हूँ
मेरी स्तुति करना है अब।
प्रहलाद बसे मन राम-राम,
हरि नाम-नाम हरि नाम-नाम
दुश्मन बन बाप उपाय करे,
धरणीधर से धक्का देकर
जीवन उसका वह नाश करे,
कण-कण में हरिहर राम बसे,
वसुधा में पड़ा वह राम जपे।
नारायण का वह विरोधी था,
और पुत्र नारायण प्रेमी था
यह यद्ध असत् और सत् का था,
इस आफत भरी घड़ी में फिर
बहना ढुण्ढा आई घर में,
सब हाल कुशलता पूछ रही।
भाई की उदासी देख बहन,
बोली भईया कुछ मदद करूँ,
मुझको वरदान मिला अदभुत,
क्या ? याद नहीं है अब तुमको!
बहना तुम ही अब बतला दो,
जब पाणिग्रहण मेरा भईया
उपहार अनोखा मिला मुझे,
सूरज ने दुःशाला दिया मुझे
और बहन मान आशीष दिया,
यह धारण कर तुम कहीं रहो
अग्नि प्रवेश न कर पाए।
मैं एक उपाय बताती हूँ
तुम दाहक चिता बनाओ जा,
उस पर जाकर मैं बैठूँगी
प्रहलाद गोद में खेलेगा,
ओढूँगी दुःशाला अपने पर
प्रहलाद खुला रह जाएगा
वह भस्म वहाँ हो जाएगा,
संकट अपना टल जाएगा।
हरि राम नाम नारायण ने,
सोंचा-समझा उलटा कीन्हा
अग्नि की लौ जो प्रचण्ड हुई,
दुःशाला उड़कर कहीं चला
होलिका जले ढुण्ढा जलती,
प्रहलाद का लाग राम रटना।
हिरण्यकश्यप क्रुद्ध हुए से,
अभिमानी वाणी बोले-
प्रहलाद को खंभे से बाँधो,
अब वार करो हर बार करो
मरना अब इसका निश्चित है,
देखें इसका यह राम नाम ??
नारायण की महिमा इस पर!
बोला प्रहलाद-सही समझे!
अर्न्तयामी सर्वत्र व्याप्त,
कण-कण में राम समाया है
जैसे खंभे पर वार किया,
खंभा फाड़े नारायण थे।
नरसिंह के रुप में प्रकट हुए,
नरसिंह भगवन नारायण ने,
गोदी में फाँस बिठाया था,
नाखूनों से छाती चीरा,
दिन-रात मिलन की बेला में,
चौखट में बैठ मिटाया था।
वरदान रहा सम्मान रहा,
इस भाँति बुराई नाश किया।
फिर रंग चले हैं गुलाल उड़ा,
होली का यह त्यौहार मना॥

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