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मिले प्रतिष्ठा तब वतन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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समझो ये चेतावनी,करे जो देश विरोध।
भूल प्रतिष्ठा वतन की,बने प्रगति अवरोध॥

शौर्य वीर सीमा वतन,उद्यत नित बलिदान।
तजो स्वार्थ द्रोही वतन,करो राष्ट्र सम्मान॥

तभी प्रतिष्ठा ख़ुद मिले,यदि प्रतिष्ठित देश।
धन वैभव सुख प्रगति सब,सुखद बने उपवेश॥

संस्कृत संस्कृति हो उभय,मिली प्रतिष्ठा देश।
पृथ्वी ही परिवार है,नित भारत संदेश॥

आन बान शान ए वतन,रक्षा समझो धर्म।
ज्ञान दान परमार्थ जग,त्याग शील सत्कर्म॥

मिले प्रतिष्ठा त्याग से,दान शील सत्कर्म।
रखते मर्यादा वतन,नीति प्रीति सद्धर्म॥

धीर-वीर गंभीर जो,प्रतिमानक पुरुषार्थ।
बढ़े प्रतिष्ठा मनुज की,दया क्षमा परमार्थ॥

राष्ट्र भक्ति मन प्रीति से,जीवन हो अभिभूत।
तभी प्रतिष्ठा अवतरण,मानव बने सपूत॥

मातृभूमि भारत सबल,हो विकास चहुँओर।
उषा किरण नवप्रीति का,बने आश नव भोर॥

आशा तृष्णा कोप मद,घातक बुद्धि विवेक।
गिरे प्रतिष्ठा मनुज की,सकल पाप उद्रेक॥

माँ बहना पत्नी सुता,विविधा नारी शक्ति।
सबला शिक्षित निर्भया,मातृतुल्य हो भक्ति॥

मिले प्रतिष्ठा न्याय को,बने मधुर सम्बन्ध।
सद्विचार निष्पक्ष मन,फैले प्रीति सुगन्ध॥

मातु पिता गुरु मान से,मिले प्रतिष्ठा लोक।
मिले प्रतिष्ठा तब वतन,मिटे रोग जन शोक॥

कवि ‘निकुंज’ निःस्वार्थ मन,लेखन रत अविराम।
अर्पण रचना रस कुसुम,भारत करूँ प्रणाम॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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