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रिटायरमेंट

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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प्रातः सुबह की सैर करने निकला,मुझे कई वर्षों के बाद एक मित्र मिल गया। मैंने उसे आवाज दी तो वह देखकर अति प्रसन्न हो गया और मुझे आलिंगन में भर लिया।
मैंने मित्र से कहा-“तू यहाँ कैसे ?”
मित्र ने कहा-“मैं अभी-अभी रिटायर हुआ हूँ तथा अपने बहू-बेटे के पास रहता हूँ। यार तू तो जानता है कि तेरी भाभी मुझे बहुत पहले ही छोड़कर स्वर्ग सिधार चुकी है। दो बेटे हैं,एक अमेरिका में सेटल हो गया गया है,दूसरा यहीं है।”
मित्र ने कहा-“और सुना,तेरा क्या हाल है ?”
मैंने कहा-“प्रभु कृपा से सभी ठीक है और रिटायरमेंट का मजा ले रहा हूँ।”
मित्र बोला-“मैं जानता हूँ,तू शुरू से अच्छा रहा है। तेरा परिवार भी अच्छा ही होगा।”
“तू स्वयं अच्छा इंसान है इसीलिए ऐसा बोल रहा है,पर तू अपनी सुना।”,मित्र को मैंने कहा।
दोस्त बोला-“अमेरिका वाला लड़का तो साल में एक बार, दीपावली में आता है,पर यहां बहू-बेटा मेरा बहुत ख्याल रखते हैं। मेरा एक नाती भी है। मेरा परिवार मेरी हर बात मानता है।”
फिर मेरा मित्र एक सप्ताह तक मुझे सुबह की सैर करते नहीं दिखा। मेरे मन में विचार आया कि कहीं वह बीमार तो नहीं हुआ। मैं एक दिन बिना बताए उसके घर चल पड़ा। जैसे ही कालबेल दबाने को उद्यत हुआ,अंदर से किसी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी तथा एक व्यक्ति जोर-जोर से कह रहा था-“बिस्तर में पड़े रहते हो। घर का कोई काम नहीं करते। सौरभ को तो स्कूल छोड़ सकते हो। ऐसा कैसे चलेगा ?”
मेरे मित्र की आवाज़ सुनाई दी-“बेटा,मैं घर के छोटे-बड़े काम रोज करता हूँ,किन्तु कुछ दिनों से तबीयत ठीक नहीं है। डॉक्टर को दिखाने का तेरे पास समय नहीं है। मैं क्या करूं ?”
मुझे सभी बातें स्पष्ट नजर आने लगी। मैंने बेल दबाई तो लड़के ने दरवाजा खोला। मुझे देखकर मेरा मित्र प्रसन्न हो गया तथा रुंधे हुए स्वर में बोला-“अच्छा हो गया,तुम आ गए। मैं इस घर पर नहीं रहूंगा,अन्यथा ये लोग मुझे समय से पहले ही मार देंगे। भाई मुझे वृद्धाश्रम ले चलो। वहां कम से कम मैं,कुछ दिन चैन से जिंदा तो रहूंगा। यहां मुझसे नहीं,मेरे पैसों से सभी को मतलब है। चलो भाई यहां से,मुझ पर एहसान करो…।”

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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