कुल पृष्ठ दर्शन : 249

You are currently viewing सब्बो बुआ

सब्बो बुआ

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
*****************************************************************

सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..

“राम-राम सब्बो बुआ! कैसी हो ?” गली से गुजरते हुए शहर से गाँव में राखी मनाने आए मदन ने पूछा।
“ठीकई है भैया! अवहि रोटी पानी के काम से निपट सुलझ के निकली हूँ। आज राखी के त्यौहार का पावन दिन है,तनिक भी फुर्सत नहीं है। आज तो आग लगी है,जरा भी टेम नही मिलो।”
सब्बो बुआ बड़बड़ाती हुई पंडित जी के घर पहुँची।
हाथ में पीतल की थाली,उसमें बेतरतीबी से पड़ी हल्दी,रोली,चावल,एक कोने में रखा नारियल,एक बड़ी पुड़िया में शक्कर और बड़ी-सी चम-चम करती राखी,जिस पर लिखा था ‘प्यारे भैया।’
बुआ को देखकर शहर से आए गुड्डन और सुमन के बच्चे खी-खी करके हँसने लगे और कमरे की ओर दौड़ लगाते हुए अंदर भाग गए।
“अरे सुनो! वो नाना जी की बहन आ गयी शक्करवाली…” औेर सब जोर से हँसने लगे।
“लो आ गई,अब दुनियाभर की बात करेगी। एक नारियल से पूरे गाँव को राखी बांध आएगी…” नानी जी कड़ाई से पूरी निकालते हुए बोली।
“नानी! यह नानाजी की सगी बहन है ?” गुड्डन की बड़ी बेटी नेहा ने पूछा।
“अरे नहीं,यह तो पूरे गाँव की बहन है,क्योंकि इसका ससुराल भी इसी गाँव में,मायका भी यही,इसलिये इस मोहल्ले में इसका मायका उस मोहल्ले में ससुराल। कोई सगा भाई है नहीं। बचपन से अकेली है,माँ-बाप बचपन में ही चल बसे। सभी गाँव वालों ने मिल कर यहीं के लड़के से शादी कर दी। तेरे नानाजी ने भाई की सारी रस्में अदा की,तब से ही यह उन्हें राखी बांधती आयी हैं।”
तभी सब्बो बुआ ने आवाज लगायी-“अरे -कहा हो भैया साब! आओ राखी बन्दवये लो ।”
नानाजी आकर सामने कुर्सी पर बैठ गए। सब्बो बुआ अपनी थाली उठाकर सिर पर पल्लू डाल,परम्परागत देशी सलीके वाली सुंदर लाल साड़ी,नीले रंग की बड़ी-सी बिंदी, गहरी लम्बी केसरिया मांग भरी,पोपला-सा मुँह,दांत आधे गिरे हुए,बड़े उत्साह से उठी और खूब प्रेम से नानाजी को टीका लगाया। चमचमाती झबरी बाली राखी कलाई पर बांधी और थोड़ी-सी शक्कर खिला दी। उन्हें शक्कर ख़िलाता देख बच्चे हँसने लगे। नानी जी ने आँख दिखायी तो बच्चे चुप हो गए।
नानाजी ने बीस रुपए का नोट निकाल कर थाली में रख बुआ के पैर छुए।
“खुश रहो भैया,खूब लम्बी उमर होए मेरे भाई की,भोले बाबा लाज राखियों मेरे भियजी की।”-ऐसी कितनी ही दुआएं देती हुई..सब्बो बुआ चलने को खड़ी हुई।
नाना जी बोले-“अरे-सब्बो! कुछ खा कर जाना।”
“नहीं भैया,तुम तो जानत हो। जब तक सबे राखी नहीं बांधूं,तब तक अन्न का एक दाना मुँह में न रखूं। अभी जाऊं,हल्कू भियजी को भी बांधनी है।”
ऐसा कह सब्बो बुआ जाते-जाते बच्चों के हाथ में दस-दस रुपए रखते हुए बोली-“रखो बुआ हूँ तुमरी माँ की।”
खी-खी करते हुए बच्चे रुपए लेकर अंदर भाग गए। सब्बो बुआ भी कुछ-कुछ बोलते- हुई चली गई।
राखी के पांच महीने बाद अचानक नानाजी को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। घर में शोक की लहर दौड़ गयीं। सभी फूट-फूट कर रो रहे थे। ऐसे में सब्बो बुआ भी बहुत दहाड़े मार-मार कर रोते हुए बोल रही थी- “अरे मेरी राखी सूनी होई गई रे,भगवान तूने कई करो जो।” औेर जोर-जोर से चिल्ला कर रोने लगी। धीरे-धीरे अंतिम क्रियाकर्म के बाद सब चले गये,सब्बो बुआ अब भी दरवाजे के बाहर बैठी हुई अपलक आकाश को देखे जा रही थी,आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे।
तभी एक दूर का रिश्तेदार आकर बोला-“यहाँ क्यों बैठी हो बाई ? चल जा यहां से,यह गमी का घर..आज कुछ नहीं मिलेगा यहाँ से।”
सब्बो पर उसकी बात का कुछ असर नहीं हुआ। वह हिली भी नहीं अपनी जगह से,
वह फिर टोकते हुए बोला-“गई नहीं अब तक!बोला न मौत हुई है यहाँ पर,जाओ इधर से।” तभी साथ वाला एक और रिश्तेदार बोला-“दे दे यार दस-बीस रुपए। इन लोगों को किसी के दुःख-दर्द से कोई सरोकार नहीं होता,बस पैसे मांगने के नाटक हैं ये तो।”
उसने बीस रुपए का नोट जबरदस्ती सब्बो बुआ के हाथ में थमा कर दरवाजा बंद कर दिया। दरवाज़े की जोरदार आवाज़ ने सब्बो बुआ को सजग कर दिया और आँखों में आँसू लिए वह अपने प्यारे भियाजी की यादों को समेटे चल दी उस घर की ओर,जहां उसके भियाजी ने उसे बिहाया था।

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

Leave a Reply