डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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सुनो सजनी जिंदगी तुम,
तेरी खुशियों का साजन हूँ
मेरी खुशबू इबादत तुम,
गगन से तारे तोड़ लाऊँl
बनूँ मैं मीत जीवन की,
सजन मैं प्रीत गाऊँ गीत
कशिश महफ़िल सजाऊँ मैं,
अमर संगीत बन जाऊँ।
तेरे नखरे चपल आँखें,
तेरे नगमें नज़ाकत ये
वफ़ा तेरी भींगी पलकें,
नशीली आँख मर जाऊँl
अदा तेरी बड़ी दिलकश,
खुदा ज़न्नते बनायी नूर
जन्मों तक प्यार जीवन के,
साजन तुझ पे लुटाऊँ मैं।
बनूँ हमदम सजन बालम,
बनूँ सरगम तराने मैं
अर्पण मन सपर्पण तन,
करूँ दीदार साजन मैं।
उल्फ़त हो कयामत तुम,
अरमाने तुम अमानत हो।
सजा शबनम परी अपनी,
पीऊँ हर गम सजन तेराl
सखा बन के सजन जख्में,
दिली मरहम लगाऊँ मैं
सनम मेरी हो मधुशाला,
बना मधुकर गुनगुनाऊँ मैंl
तेरी सूरत चाँदनी-सी,
बन चन्दा रिझाऊँ मैं
निशा मेरी,नशा भी तुम,
दिशा जीवन दशा तुम होl
रजनीगंधा महकती निशि,
जूगनू बन के छिपाऊँ मैं
मेरे हमदम मेरे साजन,
मेरा जीवन सुहागा होl
मिली तुमसे रूमानी मैं,
दिया जीवन तुझे जानम
मेरी सरगम अमानत हो,
मिले हम आज सजे प्यारेl
जीएँ महफ़िल सुहाने हैं,
सजन साजन बनें दिलकश
कशिश उल़्फत बने जोली,
बनें दूजे सितारे हमl
सुहागन हम बनी सजनी,
सजन दिलकश निराले हैं।
रचाएँ रास जीवन के,
सजन,सजना कयामत हैंll
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥