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उत्थान

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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करना हो उत्थान अगर जो,
सत्पथ पर चलना होगा
हाथ बुराई का पकड़ोगे,
निश्चित वही पतन होगा।

करना निज उत्थान तुम्हें तो,
स्वाध्यायी हो मनन करो
शुद्ध करो अपने अंतर को,
दुर्भावों का हनन करो।

शिक्षा लो उत्थान पतन की,
अपने वेद-पुराणों से
शिक्षा लो साहित्य जगत में,
हुए हैं उन विद्वानों ‌से।

जितना स्वार्थ भरा है मन में,
पहले उसका त्याग करो
फिर जैसे भी कर्म किए हैं,
उनका जरा हिसाब करो।

सामाजिक उत्थान चाहिए,
खत्म कुरीति कर डालो
हटा बुराइयों को समाज से,
मिल कर उसे बदल डालो।

बाल मजूरी बाल विवाह सब,
इनको अगर हटा दोगे
तो समाज उत्थान की तरफ,
पहला कदम बढ़ा दोगे।

भ्रूण हत्याएं मृत्यु भोज भी,
जड़ से हमें मिटाना है
दूर हटा कर सभी बुराइयां,
समाज को चमकाना है।

अपने अंदर के अहंकार को,
सबसे पहले दफन करो
बुरे कर्म के बुरे नतीजे से,
तुम पहले सदा डरो।

संस्कार जो तुम्हें मिले हैं,
उनका पालन रोज करो
आशीर्वाद ले बड़ों से अपने,
खुद में अपने ओज भरो।

भारत भू की रक्षा खातिर,
हरदम सब तैयार रहो
जीना-मरना इसी की खातिर,
बैरी पर पहला वार करो।

देश की खातिर जीओ-मरो,
उत्थान वतन हो जाएगा
नाम अमर इतिहास में होगा,
कफ़न तिरंगा पायेगाll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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