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भावनाएं

एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’ 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)

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कोई कहता देव अंश है
कोई कहता कर्मवश है,
निर्मल सुन्दर एक हंस है
कहते जिसको काया।

बसता जिसमें मन है
उठता है जिसमे उफान,
कहते जिसको हैं `भावना`
इससे जाना जाता
है इन्सान।

रिश्तों की डोरी में बंधकर
कहीं पिता कहीं पुत्र,
कहीं गुरू तो कहीं शिष्य
इन्सान अहम,
अमूल्य हो जाता है।

कभी शिशु,तो कभी युवा
प्रौढ़,वृद्ध हो जाता है,
बनते-बिगड़ते इन रिश्तों में
कहीं हो जाता है।

कहते इसको चक्रकाल सृष्टि का
यह सिलसिला अन्तहीन है,
जीवन की परिभाषा है
युग में कालचक्र कहलाता है।

सकार भावनाओं से ही
मानव-मानवता पहचानी जाती है,
उठते हुए भावनाओं के तूफान से
पूछा किसी ने-
क्या कभी चोट खायी है तुमने ?
क्या दर्द का एहसास किया है तुमने ?

कहा-भावना हूँ,दिखती हूँ मैं
आँसूओं के सैलाब में,
बहारों की मुस्कान में
जहां चाह-वहां राह में,
दर और दिवारों में
जहाँ बनता है एक घर,
जिसे कहते हैं
भावनाओं का मंदिर।

आस्था विश्वास का देवालय
जब कभी रूठ जाताा है,कोई अपनों से,
खो जाता है कहीं
चला जाता है कहीं
मनाने मैं ही जाती हूँ।

खोजने उस पंछी को
जो जाने कहाँ,
चला गया
नये घर की तलाश में
नई खुशियों की चाह में।

यह जानते हुए भी
कि `जिंदगी के सफर में,
गुजर जाते हैं
जो मकाम वो
फिर नहीं आते।`

क्या करूं भावना हूँ
मैं रो लूंगी,गा लूंगी,
चोट-दर्द को भी
भुला देना मेरी फितरत है।

नहीं भुला पाती
संवेदनाओं को,
खूबसूरत ख्वाबों को
क्योंकि सिर्फ एहसास हूँ,
मैं व्यक्ति का व्यक्तित्व हूँ
उसका अस्तित्व हूँ।

मेरे ही कारण,जन्म लेती
प्रेम,घृणा,आस्था,विश्वास,
वीरता और पुरूषार्थ
जिसको जो,
वरण करता
वही उसका मार्ग बनता,
जिसके कारण
व्यक्तित्व का निर्माण होता
अस्तित्व की पहचान होती,
समाज में योगदान होता।

कर्म का जन्म होता
गर्भ का स्पर्श होता,
मेरी ही लहरों में
उठता तूफान है,
जिसके योग साधना से
कोई होता तुच्छ,
कोई होता महान है
सर्वशक्तिमान,कायर,
बनाने में मेरा ही योगदान है।

ना मैं आत्मा में जन्म लेती
ना ही उफान बनकर उठती,
ना ही लहरों में उठती-गिरती
ना ही जलती-मरती,
मैं अविरल निरन्तर धारा हूँ।

ना मैं होती
ना ये ब्रम्हाण्ड होता,
ना विराटता का
साम्राज्य होता,
ना वर्तमान होता
ना भविष्य होता,
ना इतिहास होता
ना होता हास,
ना होता विकास
ना होता पतन,
ना होता उत्थान।

आकाष हूँ मैं
झोंका हवा का हूँ मैं,
दुनिया कहती
आस्था विश्वास हूँ मैं,
रिश्तों का अवतार हूँ
सत्य और साकार हूँ मैं,
रौशन चिराग हूँ मैं।

खूबसूरत अंदाज हूँ मैं
कोई कहता है सोच हूँ मैं,
यथार्थ हूँ मैं परमार्थ हूँ मैं
ओजपूर्ण परिमार्जित,
पुकार हूँ मैं।

अलग-अलग परिभाषा हूँ मैं
ईश्वरीय विचार की आवाज हूँ मैं,
परंतु मैं आत्मा हूँ
अंश परमात्मा हूं,
कहीं रक्षक,कहीं भक्षक
कहीं शैतान हूँ,
मैं भावना हूँ
जिसने जैसा मेरा,
अभिनन्दन किया
वदंन किया वही,
सत्य साकार हूँ मैं।

भावना हूँ
विचार कर्तव्य,
का आधार हूँ
सत्य यही है
मैं आरम्भ हूँ
मैं अन्त हूँ।

पुत्र में श्रवण कुमार
नारी में माँ का,
नौ रूप हूँ
कुंती,द्रौपदी,अहिल्या,
मन्दोदरी और तारा हूँ
प्रेयसी में राधा,
रूक्मणी हूँ
देखने में,
कुछ नहीं हूँ
क्योंकि दिखती ही नहीं,
ना ही मेरा कोई रूप है
जिसने मुझे जैसा,
वरण किया
वैसा मैंने उसका,
भरण किया।

उसके व्यक्तित्व
को जन्म दिया,
वैसा ही जाना गया
पहचाना गया,
मेरे कारण
पूजा और माना गया।

देश एवं समाज में
जाना गया,
इसलिए कहती हूँ मैं
मेरे उठने-जागने से पहले,
विषुद्व ओैर सार्थक हो
क्योंकि मेरा जागना,
न निरर्थक हो।

मैं भावना हूँ
जो एहसास,
बाद में कर्म हूँ।

यदि जग उठी
अपशगुन की बेला में,
तो सर्वनाश हूँ।

मुझे जगाओ
राग और रागिनी,
की तानों में
आत्मा से,
मुझे शगुन में
शुभारम्भ करो,
नव और नवपल
मेरे कारण उठती है
आत्मा में आवाज,
जो होती है
नव बेला की शुरूआत,
जो होती है अविस्मरणीय
विधा का आरम्भ अन्त।

यह सब मेरे कारण है
मैं दिखती नहीं,
सिर्फ एहसास हूँ
आवाज हूँ,
कर्म हूँ
धर्म हूँ,
अधर्म हूँ
मेरी उठती-गिरती,
लहरों को जिसने
जैसा सन्धान किया,
उसने जय या पराजय का
विष या अमृत,
का पान किया
जब किसी प्यार में,
उठती हूँ
तो महारास हूँ,
वीरता में उठती हूँ तो
भीष्म अर्जुन द्रोण हूँ,
हताशा में उठती तो
पराजय हूँ।

साहित्य मे उठती हूं तो
तुलसी काली दास हूँ,
देष रक्षा मे उठती हूँ तो
गुरू गोविन्द सिंह महाकाल हूँ।

पूजा में कमल हूँ
त्याग में उठती तो,
गुरू तेग बहादुर
भाई भरत हूँ,
दान में उठती तो
मोर ध्वज शीवी,
और कर्ण हूँ।

घृणा में कंस हूँ
विद्या में खूबसूरत हंस हूँ,
तू मेरे लिए,मैं तेरे लिए ही हूँ
लेकिन जब तब सत्य,
और निष्ठा में उठूं
कर्म में परिवर्तित होकर,
तुम्हारी आत्मा
शरीर से जुड़ जाऊँ,
तभी संभव है।

क्योंकि,मैं दिखती तो हूँ नहीं
करा देती सब-कुछ,
भावना हूँ एहसास हूँ।

परिणाम और प्रयास हूँ
उठता है जब जब मुझमें उफान,
जन्म लेता है एक ऐसा वर्तमान
जिससे कांप उठता,
आने वाला भविष्य
शर्मसार हो जाता वर्तमान।

आज बदल गया
मानव-मानवता का समाज,
इतिहास की
विकृत व्याख्या से,
विकृत वर्तमान
तभी तो आज की
मानव-मानवता की भावना में,
क्रूरता है कुटिलता है
जटिलता है,
वह चाहती है
सभ्यता का विनाश,
उग्रता और उग्रवाद।

एक दूसरे का खून
पीना और परिहास,
एक-दूसरे के शवों
की सीढ़ी की,
सफलता का आकाश।

तोड़ना एवं मिटा देना
इसीलिए मै व्यथित हूँ,
सामाजिक
दूषित पर्यावरण से,
विकृत हूँ
इसलिए पूछूँगी अपने निर्माता से,
क्यों विवश किया मुझे
निर्माता से विनाशक बनने को,
क्यों विवश किया
नकारात्मक आत्मा की सोच,
पराकर्म पुरूषार्थ
बनने को,
आवाज विचार में
भौतिक परिणाम में,
युग दर्द दंश बनने को।

इसलिए प्रार्थना है मेरी
मेरा जन्म होने दो,
शुद्ध और शांत,
उज्जवल आत्मा के प्रांत में।

जब-जब जन्म लेती है
भावनाएं सार्थक एवं,
सत्य में बनता है
पात्र एवं कथानक,
युग के पथ प्रकाश में।

इसी रूप में
भावनाओं को,
जाना-पहचाना
और उसके तूफान,
परवान को जाना जाता।

अनेक इतिहास की
रचना हुई,
जिसके कारण आज
पूजती है दुनिया,
कृष्णा,महावीर
बुद्ध,राम को भावनाओं की,
आस्था और प्रवाह में।

तो कंस क्रंदन करती
हैं भावनाएं,
गांधी,लूथर,नेल्सन
पटेल,सुभाष का,
अनुकरण करती हैं भावनाएं।

नेहरू,लाल बहादुर
इन्दिरा,अटल,
को स्मरण में
जीवन्त रखती हैं भावनाएं।

ये वो आत्माएं हैं
जिनकी भावनाओं में,
सत्य का सार्थक
प्रकाश का साकार,
आज मार्गदर्शक है
समाज का उनके,
कर्म निर्माण से संजोती
हैं भावनाएं,
यहां तक वन्दनीय
हैं भावनाएं।

वर्तमान के परिवेश में,
अति करती जब जन्म
लेती हैं भावनाएं,
तब समाज में
विघ्न और विनाशक,
होती हैं भावनाएं।

इसलिए सरस्वती के
साक्ष्य में मेरे जन्म लेने से,
उफान में उठने से
जीवन में संचार हो,
समग्रता का निर्माण हो
सम्पूर्णता स्नेह का,
साम्राज्य हो।

कर्तव्य निष्ठा परिणाम
का परिवेष हो,
तब मेरा जन्म लेना
सार्थक है।

मेरा एहसास
ईश्वर का विश्वास है,
बना दूंगी वही
जो बनना चाहोगे,
करा दूंगी वही
जो करना चाहोगे
मिटा दूंगी गर,
मिटना चाहोगे
बसा दूंगी गर
बसना चाहोगे।

क्योकि मेरे जन्म लेने से
सोच का अस्तित्व है,
आगे वही कर्तव्य है
वही मनुष्य का,
दायित्व बोध है
और पहचान है,
सम्मान है अपमान है
मूढ़ है महान है,
मूर्ख और बुद्विमान है।

मेरा तूफान युवा है
तो शांत सरोवर-सा,
प्रौढ़ है
खामोश स्थिर,
अनुभव-सा वृद्व है
मैं ही जीवन और मृत्यु,
एक समान हूँ।

मृत्यु में भी जीवन
की निरन्तरता हूँ,
मैंने आज,कल और भविष्य
में जीवित रखा है,
इतिहास पत्रों और
महापुरूषों को,
जो सशरीर युग में
न होते हुए भी,
भावनाओं में जीवित रहते हैं
काल के प्रवाह संग,
भावनओं के उफान में
प्रेरणा और प्रसंग में,
ब्रह्मांड की निरन्तरता के
पथ प्रवाह में,
यही है मेरा वजूद
मैं भाग्य हूँ भगवान,
का आशीर्वाद हूँ
जीवन-मृत्यु हूँ,
नित्य सुबह-शाम
नित्य निरन्तरता हूँ।

परन्तु आने वाले
जीवनकाल में भी,
जाने कहां हैं वो लोग
जिनमें मैंने जन्म
लिया जरूर लेकिन,
कर दिया मुझे
निरर्थक धूल-धूल।

जिनके मन से निकल
कर बन गई शूल,
महकती रही बनकर
एक फूल उनके सामने,
परन्तु वो समझ न सके
क्योंकि मैं भावना हूँ,
एहसास हूँ
आत्मा की आवाज हूँ,
श्रेष्ठता मेरा गहना है
और वहीं मेरा रहना है।

अतः धैर्य धीर वीर तुम
मेरा वरण करो,
मुझे अपने वर्तमान में
ग्रहण करो,
यही मैं सच्चा एहसास हूँ
तुम्हारा प्रकाश हूँ,
मार्ग में साथ हूँ।

मैं भावना और एहसास हूँ
मनुष्यता की आत्मा,
सुर और ताल हूँ
कवि की कल्पना,
भक्ति की आत्मा से
उठी कर्तव्य में परिणीत,
निष्कर्ष और परिणाम हूँ।

तो पंछी आकाश हूँ
क्योंकि मैं भावना हूँ,
दिखती नहीं एहसास हूँ
आस्था और विश्वास हूँ,
कर्तव्य दायित्व बोध का
पथ प्रकाश हूँ,
मैं वर्तमान भविष्य
इतिहास हूँ,
मैं भावना हूँ
काया की कल्पना हूँ,
धरातल की सच्चाई हूँ
जज्बा जज्बात हूँ,
जमीं आसमां हूँ
काल-कर्म का,
भाग्य भगवान हूँ
बताती हूँ युग को आज,
मै भावना हूँ।
तुम्हारे अस्तित्व की,
आस-विश्वास हूँ॥

परिचय–एन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।