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तुलसीदास का भारतीय समाज और जीवन दर्शन में महत्व

एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’ 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)

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द्वापर का अवसान,
कलयुग का प्रारम्भ
सत्य सनातन
संस्कृत पर,
पल प्रहर का काल।

आस्था के विश्वास
का होने लगा हरास,
काल की दस्तक को
सुन न सका
भारत महान।

बुद्ध-महावीर
मानव स्वरूप में,
सत्य सनातन
का पर्याय।

जीजस क्राइस,
हजरत मोहम्मद
पैगम्बर का,
मानव मानवता
के इस्लाम का प्रार्दुभाव।

काल निरंतर,
अपनी गति से
चलता जाता,
शने:-शने:
बढ़ता जाता।

घृणा-द्वेष-दम्भ में,
लड़ते-मरते-कटते
भारत भूमि के,
शासक राज्य
गुलामी के पथ पे,
बढ़ता राष्ट्र।

गोरी,गजनवी,तैमूर,
यवनों के आक्रमण से
हताहत भारत बेहाल।

निश्रृंसता का दानव लंग तैमूर,
बच न सका गजनवी की
क्रूरता से सोमनाथ।

पृथ्वी जैसी शूरवीर,
भारत की अस्मत का प्रतीक
धैर्य धीर रिश्तों के
धोखे से परास्त।

बाबर ने जाना,
भारत के
खण्ड-खण्ड में बँटे,
राज्य राजनीति का हाल।

निकल पड़ा
दिग्विजयी का सपना लेकर,
तुर्क क्रूरता और कुरान।

तहस नहस करता,
भारत की मर्यादा
संस्कृतियों को,
गजनवी को काशी में
दोहराया,
विशेषवर को
कुंए में पधराया।

ज्ञान वापी इस्लाम
का केन्द्र बनाया,
रौंदता भारत के
अभिमान को,
मर्यादा पुरूषोत्तम की
अयोध्या आया।

हिन्दू-हिन्दुस्तान की,
जन-जन की आकांक्षाओं
आस्था का मान,
मरदन करता
राम-जन्मभूमि पर
मस्जिद का किया निर्माण।

मथुरा में कृष्ण भूमि का
किया सत्यानाश,
भारत की संस्कृतियों को
जर्रा-जर्रा करता दफन करता
क्रूरता का इस्लाम।

बाबर की चाहत
हिन्दुस्तान बने
तुर्कस्तान,
हुमायूँ उसकी सन्तान
विरासत की अक्षुण्णता
को लड़ता,
जीवनभर परेशान।

अकबर होशियार,
भाव-भावना के
अस्त्रों-शस्त्रों का,
मानव इस्लाम।
प्रेम भाव
रिश्तों नातों से,
हिन्दोस्तान के
समापन के प्रयास का,
अल्लाह हू अकबर नाम।

जहांगीर,
पुरखों की जागीर का
चौकीदार,
शाहजहां मुगल
सल्तनत में अंग्रेजों के
आमंत्रण का बादशाह,
ईस्ट इण्डिया कम्पनी
ने शुरू किया,
अपना व्यापार।

भारत की संस्कृति,
का लोप हो रहा था
अवशेष बची थी,
विश्व गुरू
सोने की चिड़िया,
भारत का इतिहास।

संक्रमण काल में
हिन्दोस्तान
चहुँओर,
गुलामी की
संस्कृतियों के
अंधेरों के,
प्रहार का हाहाकार।

काल ने करवट ली,
जागी भारत की
संस्कृतियों की चेतना,
जन्मा अंधा सूर श्याम
भक्ति के सागर,
का गागर
सत्य सनातन का सत्कार।

कृष्णा की दीवानी
मीरा,
गरल पान सत्य सनातन
के कृष्णा की भक्ति का
सहकार।

रसखान,रहीम,कबीर
धर्म-कर्म विधाता की,
व्याख्या के साधक
भारत की
संस्कृतियों के अभिमान।

बारह माह गर्भ में रहकर,
दांत बाल समेत
तुलसी जन्म
तुलसीयुग का प्रादुर्भाव।

जन्म संघ से,
रिश्ते नातों का
छूटा साथ,
अशुभ जान
सबका तिरस्कार।

मारा-मारा फिरत,
दिन बीतत
अशुभ अमगंल का,
जीवन तिरस्कार।

बीत गया किशोर उम्र,
आया युवा काल
सुनते-सुनते दुनिया का,
ताना तुलसी हुआ जवान
सुदंर सुकन्या,
जीवन संगिनी
रिश्तों समाज के तानों से,
आहत व्यथित तुलसीदास
पत्नी प्रेयसी जीवन का मरहम
अशुभ अमगंल अपमान के
जीवन भावों का अवसान।

डूब गया तुलसीदास,
प्रेम का प्यासा
प्रेम बूंद से,
प्रेम गंग में
प्रेम सागर,
तक चाहत
भर ले दुनिया का प्यास,
अपने वर्तमान का
स्वर्ग दुनिया संसार।

पत्नी ही तुलसी की,
प्रथम गुरू दे गयी
जीवन दर्शन हाड़-माँस के,
जीवन का असली ज्ञान।

जागा तब बैरागी मन,
त्यागा मान अपमान प्रेम घृणा
का संसार,
निकल पड़ा कण-कण में
खोजने राम।

मिला प्रेत जीवन राहों में,
बतलाया तुलसी को
मिलेंगे तुमको,
जीवन राहों में राम।

काशी जाओ,
राम मिलन की
अलख जगाओ,
जहां निरंतर बहती
गंगा,मोक्ष मार्ग की
मणकणिका
अस्सी की राम कथा
तेरे जीवन का प्रवाह।

महावीर आता है,
बनकर कौढ़ी
राम भक्ति का,
तेरा द्वार।

जाओ तुलसी,
बतलाएंगें
राम मिलन की
प्रीति-रीति,
हनुमान।

तुलसी काशी पहुंचे,
नित अस्सी पर राम कथा
सुनते-सुनते,
बहुत दिन बीते
मिला नहीं,
पवन पुत्र हनुमान।

खोजत-खोजत,
राम मिलन की राह
गुजर गये कई साल।

एक दिन संध्या को,
राम कथा की शुरूआत
मध्य रात्रि,
कथा समापन
वृद्व एक कद काठी का,
क्षीण कोढ़ी
राम कथा का लेता स्वाद।

तुलसी की अंर्तआत्मा,
जागी पहुंचे कोढ़ी के पास
पूछा बाबा प्रतिदिन
आते राम कथा का
करते रसपान कौन हो,

तुम कैसी दशा,
तुम्हारी बतलाओ
तुम बैठे रहते,
अनवरत सहते
बहुत अपमान।

बहुत जिद जब तुलसी ने की,
प्रकट हुए तब हनुमान बोले
जय श्री राम
तुलसी का हर्षित-हुलसित,
बोले पवन पुत्र से
आप भक्त राम के
अंर्तमन राम के
मैं कैसे मिल पाऊँ राम से,
जीवन सफल बनाऊं
दिखलाओ तुम मुझे मार्ग।

पवन पुत्र ने
जब जाना तुलसी है,
सच्चे भक्त राम के
भक्ति में अनुरागी,
बोले अंजनी पुत्र
जाओ चित्रकूट मिल,
जाएंगें तुमको राम।

तुलसी पहुंचे चित्रकूट,
के घाट संतों की भीड़
सर्वत्र गूँजता,
जय श्री राम जय श्री राम
तिलक दिया रघुबीर ने,
तुलसी बने तुलसीदास।

राम हदय में जीवन राम,
महिमा महत्व जीवन का राम
मोक्ष राम चरण में जीवन,
का अनुराग।

मन का अंधकार खत्म,
मिथ्या नश्वर संसार
में राम नाम ही,
किश्ती और पतवार।

तुलसी मन मानस से,
राम राम नाम का संसार
राम चरित्र मानस मानव मूल्यों
की संस्कृत संस्कृतियों,
का व्यवहार।

कलयुग में प्राणी की मर्यादा
गिरते मूल्यों में भरत भाई,
लक्ष्मण,सीता नारी
माता कौशल्या कैकेयी,
का आचरण व्यवहार
सामजिक मूल्यों का,
संचार।

सरस सरल मूल्यों का,
सार्थक सत्यार्थ का प्रकाश।

तुलसीदास युग संस्कृत के,
व्याख्याता राम चरित मानस
मर्यादाओं का संवाद,
कलयुग में तुलसी की
राम चरित्र मानस अमर कृति,
अमृत प्रप्ति की चाह रही॥

परिचय-एन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।

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