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चुभन

सुश्री नमिता दुबे
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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सारिका इंदौर मे जन्मी भारतीय संस्कारों में घड़ी रुड़की से आई.आई.टी. कर अमेरिका की एक नामी कम्पनी कार्यरत थी, कार्य के दौरान ही उसका परिचय सूरज से हुआ था। विचारों की समता परिणय में परिलक्षित हुई। उन्होंने अपनी बेटी निकिता को भी विदेशी मिट्टी में स्वदेशी संस्कारों की सौंधी महक से पोषित किया था। मजबूरीवश वह विदेश मे रह रहे थे,किन्तु उनकी जड़ें भारत से बंधी थी।
सारिका का शादी के लगभग १६ वर्ष बाद भारत आना हो रहा था। निकिता के किशोर मन पर भारत की विशिष्ट छाप थी,वह भी अपनी माँ के साथ भारत आकर बहुत रोमांचित थी। होली का समय था,चारों ओर खुशी का वातावरण था। सारिका ने निकिता को रंगपंचमी पर निकलने वाली इंदौर की गैर,जो विश्व धरोहर में शामिल होने वाली थी,के बारे में बताया था। यू ट्यूब पर इंदौर की रंगारंग गैर देखकर सारिका अपनी बेटी को उस रंग से सराबोर करने के लिए लालायित हो गई थी। उसे आज अपने बचपन के दिन याद आ गए थे,जब यूँ ही मोहल्ले के बच्चों के साथ वे गैर के साथ हो जाते थे। तब वहाँ बड़े भैया लोग उनको खुले ट्रक में बैठा देते थे और फिर सब बच्चे मिलकर खूब गुलाल उड़ाते थे। इन यादों में डूबी सारिका,निकिता और अपनी माँ के साथ राजवाड़ा पहुँची। सारिका आज स्वयं भी गर्वित थी,क्योंकि वह अपनी बेटी को अपने जन्मस्थल की उस धरोहर से मिलवा रही थी जो विश्व पटल पर अपनी पहचान बना चुकी थी।
दोपहर के २ बजे गैर अपने पूरे शबाब पर थी और उसमें शहर के छुटभैया मवाली भी थे,जो नशे में मद मस्त हो झूम रहे थे। जैसे ही उस टोली ने देखा कि ३ महिलाएं भी गैर देखने आई हैं,उन्होंने अपना हवसी तांडव शुरू कर दिया। बाकी जनता और यहाँ तक कि पुलिस वाले भी भांग के नशे में मदमस्त थे। सारिका कुछ समझ पाती,उसके पहले ही कुछ लड़कों ने उनकी गाड़ी का दरवाजा खोल निकिता को बाहर निकाल लिया। चिंतित नानी और सारिका भी निकिता को बचाने बाहर आ गई। बेबस सहमी-डरी हुई तीनों महिलाएं पुलिस और आम जनता से सहायता की भीख मांग रही थीं, वहीं हवसियों का अट्टहास बढ़ता ही जा रहा था। बाकी सब तमाशबीन बने बेबसी का लुत्फ उठा रहे थे। बहुत झूमाझटकी और कहासुनी,फिर पुलिस के हस्तक्षेप के बाद कोई दो घंटे मे मामला शांत तो हुआ,किन्तु सारिका शर्म से बेजार हई जा रही थी।
अभी तक जिस संस्कृति के गुणगान करते वह कभी थकती नहीं थी,आज भारत के प्रति उसका दंभ दम तोड़ चुका था। निकिता अपने किशोर मन पर भारत की वहशियत की अमिट छाप लेकर कभी वापस ना आने के प्रण के साथ भारत को अलविदा कह गई थी। आज ४ वर्ष बाद भी निकिता सपने में उन काले-पीले राक्षसी हाथों को अपनी ओर बढ़ते देख चीख पड़ती थी।

परिचय : सुश्री नमिता दुबे का जन्म ग्वालियर में ९ जून १९६६ को हुआ। आप एम.फिल.(भूगोल) तथा बी.एड. करने के बाद १९९० से वर्तमान तक शिक्षण कार्य में संलग्न हैं। आपका सपना सिविल सेवा में जाना था,इसलिए बेमन से शिक्षक पद ग्रहण किया,किन्तु इस क्षेत्र में आने पर साधनहीन विद्यार्थियों को सही शिक्षा और उचित मार्गदर्शन देकर जो ख़ुशी तथा मानसिक संतुष्टि मिली,उसने जीवन के मायने ही बदल दिए। सुश्री दुबे का निवास इंदौर में केसरबाग मार्ग पर है। आप कई वर्ष से निशक्त और बालिका शिक्षा पर कार्य कर रही हैं। वर्तमान में भी आप बस्ती की गरीब महिलाओं को शिक्षित करने एवं स्वच्छ और ससम्मान जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। २०१६ में आपको ज्ञान प्रेम एजुकेशन एन्ड सोशल डेवलपमेंट सोसायटी द्वारा `नई शिक्षा नीति-एक पहल-कुशल एवं कौशल भारत की ओर` विषय पर दिए गए श्रेष्ठ सुझावों हेतु मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा और कौशल मंत्री दीपक जोशी द्वारा सम्मानित किया गया है। इसके अलावा श्रेष्ठ शिक्षण हेतु रोटरी क्लब,नगर निगम एवं शासकीय अधिकारी-कर्मचारी संगठन द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है।  लेखन की बात की जाए तो शौकिया लेखन तो काफी समय से कर रही थीं,पर कुछ समय से अखबारों-पत्रिकाओं में भी लेख-कविताएं निरंतर प्रकाशित हो रही है। आपको सितम्बर २०१७ में श्रेष्ठ लेखन हेतु दैनिक अखबार द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान से नवाजा गया है। आपकी नजर में लेखन का उदेश्य मन के भावों को सब तक पहुंचाकर सामाजिक चेतना लाना और हिंदी भाषा को फैलाना है।

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