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सामाजिक दर्पण मैं पुस्तक हूँ

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……

ज्ञान का वैभव समेटे अन्तस्थल में,
सृष्टि के आरब्ध से वर्तमान तक
अबाध अनवरत यायावर,
बन अतीत का आईना शाश्वत,चिरन्तन
पारदर्शी निर्मल जीवन सलिल,
कथिनक,ग्रन्थ या पोथी अभिलेख
कुछ भी कहो,मैं जीवन पुस्तक हूँ।
कर चतुर्वेदों को समाहित अन्तर्मन,
ब्राह्मण,आरण्यक,उपनिषदों या वेदांगों
गणित,विज्ञान या खगोल या आयुर्वेद,
अर्थशास्त्र या राजनीति की महाभारत
सब शान्त मन समेटे आदर्श रामायण,
नीति,धर्म,न्याय,त्याग,तपोबल,
सबकी साक्षी प्रत्यक्षदर्शी बन मैं पुस्तक हूँ।
लाखों वर्षों की अमानत ए खूबसूरत,
नायाब विविध अल्फ़ाज से सजे
सोलह श्रंगार से सजी दुल्हन की तरह,
शर्मीली,नशीली नटखट रूपसी
अनवरत यौवन के उफ़ान में मदमस्त,
मनोहर विराट व्यक्तित्व की धनी पुस्तक हूँ।
सुख-दु:ख,गम-खुशी सबकी साथी,
सप्तसिन्धु सम गह्वर दावानल साक्षी
इतिहास वर्तमान और भविष्य की,
निर्माणक,अन्वेषक,दिग्दर्शक निरत
अभ्यासी धीरज साहस और आत्मबल,
बन प्रमाणिक संघर्षी संवाहक मैं पुस्तक हूँ।
अपौरुषेय श्रुति वेद रूप प्रवहमान अनवरत,
ताम्रपत्र,भोजपत्र विविध कागजों पर
ऋषियों,संतों-मुनियों,कवि,लेखकों,
वैज्ञानिकों से चित्रांकित टंकित अभिलिखित
सार्वजनिन,सार्वजनिक,सार्वभौमिक,
ज्ञान सत्ता की प्रतिमानक मैं पुस्तक हूँ।
नशा हूँ पाठकों,छात्र-शिक्षकों का,
विधिलेखी परी प्रीति संगीत मनोहर
इठलाती मदमाती लेखिनी की सहेली,
स्याही से अठखेल करती हुई अनोखी
समय की हर चुनौती को स्वीकारती।
वक्त के बहुरूप साए में रची-बसी,
यथार्थ सामाजिक दर्पण मैं पुस्तक हूँ॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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