पाहुन फागुन
डॉ.शैल चन्द्रा धमतरी(छत्तीसगढ़) ******************************************************************** टेर रहे हैं पपीहे, बुला रहे हैं फागुन को। कोयल तान सुना रही, आने वाले पाहुन को। पलाश के दहकते होंठ हो गए हैं लाल, अमलताश के फूल भी दिख रहे हैं कमाल बहकी-बहकी हवा मचल रही है गान को। पग में घुंघरू बांधे नाच रहे भौंरे मनमीत। अधरों पर कुछ … Read more