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कोहरा

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
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छा गया है
चारों तरफ
कोहरा घना,
आदमी
घर में ही
अब बन्दी बना।
हो गई है
कम बहुत
लो दृश्यता,
राह का
कुछ भी नहीं
चलता पता।
कोहरे में
दिन ही पूरा
ढल रहा,
लगता हमको
सूर्य भी है
छल रहा।
आँधियाँ भी
अब घृणा की
चल रही,
बात मन की
अब घुटन में
पल रही।
लाचार
लोगों की
लगी अब भीड़ है,
तिनका तिनका
हर किसी का
नीड़ है।
यह अंधेरा
कोई न
आकर छाँटता,
हर सवेरा
आस का बस
आ धुँधलका बाँटता।
आज दुःख से
हर मनुज
आक्रांत है,
कह रहा
पर तंत्र
सब कुछ शांत है॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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