हरे-भरे पेड़
पूनम दुबे सरगुजा(छत्तीसगढ़) ****************************************************************************** बैठे-बैठे मन कहीं खो गया, कड़ी धूप में आज रो दिया… दूर दूर तक हाय पेड़ नहीं, ना हवा ठंडी है,ना छाया कहीं। रूक जाओ अब भी ऐ मानव, पेड़ काटकर बनो ना दानव… क्यूं ये अपराध हो रहा, जघन बढ़ा पाप हो रहा… पेड़ों से ही साँसें अपनी। आओ हम … Read more