कुल पृष्ठ दर्शन : 310

भाषाई दीवार को गिराने में `देवनागरी` की महत्वपूर्ण भूमिका

डॉ.प्रो.पुष्पेन्द्र दुबे

इंदौर(मध्यप्रदेश)

********************************************************************

शिक्षा नीति २०१९ के प्रारुप पर भाषा को लेकर बवाल……….
आज के जमाने में भाषाएँ भारत को तोड़ने का काम करेंगी। हरेक प्रान्त और हरेक व्यक्ति को अपनी भाषा से प्रेम और लगाव होना अनुचित नहीं है,लेकिन हमें यह बात भी नहीं भूलना चाहिए कि भाषा के आधार से दुनिया में बड़े-बड़े देश विभाजित हो गए। स्मरण कीजिये उस वक्त का,जब भारत की सीमाएं अफगानिस्तान तक जाती थी। उस समय और बहुत बाद तक भारत को सांस्कृतिक रूप से एक रखने में संस्कृत भाषा ने अपना अमूल्य योगदान दिया। इस भाषा में श्रेष्ठ आध्यात्मिक साहित्य की रचना की गयी। जिन संतों ने देश के विभिन्न प्रान्तों में जन्म लिया,उन्होंने अपने विचारों को देश के लोगों तक पहुँचाने में संस्कृत भाषा सीखी। हरेक प्रांत की भाषा के साथ हरेक भाषा की लिपि भी विकसित हुई। कभी पुरातन काल में बनारस में विद्वानों ने एकत्र होकर यह निर्णय लिया था कि भाषाएँ भले ही अलग-अलग हों,लेकिन लिपि देवनागरी होगी। इसलिए,मराठी भाषा अलग होते हुए भी उसकी लिपि देवनागरी है।
आज विद्वानों को यह बात अच्छे से समझ लेना होगी कि विज्ञान और तकनीक ने भाषा के बंधनों को बहुत हद तक ढीला कर दिया है। आगे जाकर भाषाओं को समझने में और आसानी होगी। इसलिए,देश को जोड़ने का काम देवनागरी लिपि करेगी। आज देश के लोग अन्य प्रांत की भाषा सीखने के इच्छुक हैं, परन्तु उनके सीखने में लिपि बाधक हो जाती है। पहले लिपि सीखें,फिर भाषा सीखें। यदि देवनागरी लिपि में भाषा आ जाती है,तो समस्या हल हो जाती है। यद्यपि,देवनागरी लिपि में भी सुधार की जरूरत है,लेकिन पहले देवनागरी लिपि को स्वीकार किया जाए तो सुधार करना आसान हो जाएगा। भाषा के साथ-साथ लिपि के आग्रह ने प्रश्न को जटिल बना दिया है। आज भारत में वैदिक परम्परा में विश्वास रखने वाले सभी लोग संस्कृत के मन्त्रों का एक सामान रूप से उच्चारण करते हैं। वहां किसी प्रकार का कोई विरोध दिखाई नहीं देता है। इसलिए, देवनागरी लिपि को अपनाना अंत्यंत आवश्यक हो गया हैl नई शिक्षा नीति में भाषा के स्थान पर देवनागरी लिपि पर जोर देना चाहिए। अनेक विद्वान भी आज हिंदी और देवनागरी लिपि को एक मान बैठे हैं। इस भ्रम का निरसन जरूरी है। यदि अंग्रेजी को भी रोमन की बजाय देवनागरी लिपि में लिखना प्रारंभ कर दिया जाये तो अंग्रेजी का एक शुद्ध शब्दकोश तैयार हो सकता है। यह शब्दकोश देवनागरी लिपि के उच्चारण के अनुसार होगा,न कि अंग्रेजी की अवैज्ञानिकता के अनुसार। देश की भाषाओं में प्रचलित एक समान शब्दों का एक वृहत शब्दकोश बना लिया जाए,जिससे एक प्रांत से दूसरे प्रांत में जाने वाले भारतीय शब्दों से अनजान न रहें।
भाषाई दीवार को गिराने में देवनागरी लिपि न सिर्फ सहायता कर सकती है,बल्कि वह देश की एकता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

Leave a Reply