बन जा खुद की मीत

नताशा गिरी  ‘शिखा’ मुंबई(महाराष्ट्र)******************************************************** आशिकी-आवारगी की बहुत हो गई गुफ़्तगू,खुद से तू उतनी ही,कभी मोहब्बत ही कर ले। डाल मिट्टी उन तमाम संजीदगियों पर,खोल मुट्ठी अनकही दबी ख्वाहिशों की। क्यों देख रही है,हो किसी की रहमत,बस तू हो जा ख़ुद से अब सहमत है। कब तक रहेगी तुझमें बुलबुल की नजाकत,बारिशों के डर से तू कब … Read more

हिन्दी और बोलियों के मधुर संबंध तोड़ने की नापाक कोशिशें

प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामीदिल्ली *********************************************************** हिन्दी को बांटने का जो कुप्रयास हो रहा है,उसमें अँग्रेज़ीदाँ लोगों का तो सामना करना पड़ ही रहा है,लेकिन विडंबना यह है कि हिन्दी को तोड़ने वाले अपने ही लोग कम नहीं हैं जो अपने निहित स्वार्थ के लिए अंग्रेज़ी वालों से कम भूमिका नहीं निभा रहे। वे हिन्दी और … Read more

कैसे बिसरा दूँ उन यादों को

नताशा गिरी  ‘शिखा’ मुंबई(महाराष्ट्र)******************************************************** कुछ शब्द पिरो दूँ जज्बातों में,कुछ वक्त मैं निशब्द रहूँ,पिता का जब नाम आए,उस वक्त मैं क्या-क्या कहूँ। उम्र के हर पड़ाव में रिश्तों का मतलब बदला था,बेटी से कब मित्र बनी,नहले पर जैसे वह दहला था। याद है हमें आज भी,सब ताजा-ताजा लगता है,जब उनके पदचिन्हों पर खुद के पद चिन्ह … Read more

तुम्हारा किरदार

नताशा गिरी  ‘शिखा’ मुंबई(महाराष्ट्र)********************************************************************* इक किरदार मैं तुम्हारा भी निभाती हूँ,बेतहाशा तुमसे झगड़ती हूँ,हाँ रोती हूँतुम्हारे किरदार में जाकर खुद को समझा भी जाती हूँ,हाँ,इस तरह इक किरदार मैं तुम्हारा भी निभाती हूँ। तुम दिखाते हो जो सपने,अधूरा छोड़ जाने के लिए,तुम्हारे किरदार में जाकर तुम्हारे हक की सफाई मेंतुम्हारी दलील पेश करती हूँ,तुम्हें सही ठहराती … Read more

देशभक्त वह सच्चा था

नताशा गिरी  ‘शिखा’ मुंबई(महाराष्ट्र)********************************************************************* युवा की अगुवाई में शुरू हुई एक देखो लड़ाई थी,मंगल पाण्डे के आक्रोश ने विद्रोह बिगुल बजाई थी।जो जंग लड़ी थी धर्म की आजादी तक पहुंचाई थी,इस क्रांति की आवाज ने कम्पनी की चूल हिलाई थी॥ बलिया जिले में जन्मा था कद काठी में वह पक्का था,बैरकपुर की छावनी में देखो देशभक्त … Read more

दिशाहीन हो रहा हमारा लोकतंत्र

प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी दिल्ली *************************************************************************** लोकतंत्र को विश्व में मानव और मानवता की सुरक्षा का एक सशक्त माध्यम माना जाता है। देश की प्रगति के लिए यह एक मानवीय,सुसंस्कृत और गरिमामय प्रणाली है। विचार और निर्णय पर इसका अंकुश तो नहीं होता,लेकिन यह किसी की विचारधारा को स्वतंत्र और सुरक्षित रूप में प्रस्तुत करने … Read more

गांधी जी की नज़र में हिन्दी

प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी दिल्ली *************************************************************************** युगपुरुष,युगनिर्माता और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारत के स्वंतत्रता आंदोलन के महानायक थे। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान न केवल उस युग की सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर विचार किया,वरन् इस युग की हिन्दुस्तानी जाति के गठन और उसके सांस्कृतिक परिवेश के युग पर भी चिंतन किया। इस … Read more

राष्ट्र,राष्ट्रीयता और राष्ट्रभाषा हिन्दी

प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी दिल्ली *************************************************************************** राष्ट्रभाषा को समझने से पहले राष्ट्र और राष्ट्रीयता शब्दों को समझना असमीचीन न होगा और राष्ट्र को समझने के लिए देश और जाति की अवधारणा को समझना आवश्यक है। राष्ट्र,राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रीयता भी एक दूसरे में अंतर्ग्रंथित हैं,जो किसी देश की भाषा और संस्कृति को स्पष्ट करने में सहायक … Read more

हिन्दी का अभिमान

नताशा गिरी  ‘शिखा’  मुंबई(महाराष्ट्र) ********************************************************************* हिंदी  दिवस स्पर्धा विशेष……………….. हिंद की निवासी हूँ,हिंदी का अभिमान चाहती हूँ, अंग्रेजी का बहिष्कार नहीं,हिंदी का अधिकार चाहती हूँ। कब कहा है मैंने अंग्रेजी मीडियम से बच्चे न पढ़ाओ, साथ में उनको रामायण-महाभारत की कहानियां भी तो बतलाओ। बतियाने लगे हैं बच्चे अंग्रेजी में गिटपिट-गिटपिट, माँ-बाप का सीना देखो … Read more

क्या बेटियाँ ना लाएं…?

नताशा गिरी  ‘शिखा’  मुंबई(महाराष्ट्र) ********************************************************************* दुर्दम्य यौवन बिटिया पर छाया, आँखों की कालिमा गहराई। हाथ पीले कर दो बिटिया के, पास-पड़ोसी ने बात सुनाई॥ बिटिया की आँखों में डर-सा देखा, फिर भी मन ही मन मुस्काई। जगती आँखों से न जाने कितने, रंग-बिरंगे सपने सजाये॥ द्वार से द्वार भटक रहे वर की तलाश में, दाम … Read more