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देशभक्त वह सच्चा था

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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युवा की अगुवाई में शुरू हुई एक देखो लड़ाई थी,
मंगल पाण्डे के आक्रोश ने विद्रोह बिगुल बजाई थी।
जो जंग लड़ी थी धर्म की आजादी तक पहुंचाई थी,
इस क्रांति की आवाज ने कम्पनी की चूल हिलाई थी॥

बलिया जिले में जन्मा था कद काठी में वह पक्का था,
बैरकपुर की छावनी में देखो देशभक्त वह सच्चा था।
देख वीरता जोश जाग उठा देश का बच्चा-बच्चा था,
देख रूप विकराल हर अफ़सर अब हक्का-बक्का था॥

बैरकपुर से स्वाधीनता का आंदोलन मेरठ आ पहुंचा था,
मारो फिरंगी को दे नारा जंग में गोरों को धरदबोचा था।
अस्त होने वाला अंग्रेजी राज ध्वस्त हो रहा था,
विद्रोह का शंखनाद सुन-सुन कर गुरुर नष्ट हो रहा था॥

जगा स्वाभिमान भारत का,माँ के कदमों में झूला था,
बगावत से शहादत की कहानी शहीद शव से बोला था।
१८५७ को क्रांति बीज जो एक युवा ने बोया था,
आजादी के वटवृक्ष तब्दीली में ९० साल खोया था॥

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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