हूक

डॉ. पंकज वासिनीपटना (बिहार) ******************** काव्य संग्रह हम और तुम से हमबता नहीं सकते,कितना अच्छा लगता था…तेरा आँखों से छूना…lलम्हा-दर-लम्हा…चुपचाप…सस्मित…!और,रोम-रोम मेरा पुलकित…lहृदय-वीणा पर,बज उठता मालकौश…!मन-मयूर नर्तित…,स्वप्न-अंजित-नयन सस्मित…lअरुण-मुख लाज-नत…और रुक जाते थे,हाथ मेरेकभी रोटियाँ बेलते…,कभी अम्मा के पाँव दबाते…कभी बाबूजी को खाना परोसते…lदरम्यां हमारे,आज कोई नहींसिर्फ हवाएँ,महत्वाकांक्षा कीकरती सांय-सांय…!एक हूक-सी,उठती है अंतस मेंफिर इक बार,उन्हीं मीठी … Read more

उस घेरे को तोड़ दिया है

डॉ.अमर ‘पंकज’दिल्ली******************************************************** बंद किया था खुद को जिसमें उस घेरे को तोड़ दिया है,मतवादों का गोरख धंधा मैंने अब तो छोड़ दिया है। समता क्रांति मनुजता केवल लफ्ज़ नहीं हैं जीवन दर्शन,पर-हित सुख-सागर की दिशा में दु:ख का दरिया मोड़ दिया है। ज़िल्द फटी पुस्तक भी पुरानी लेकिन है अध्याय नया सा,शंकर बन हालाहल जो … Read more

सँभलकर देखता हूँ मैं

डॉ.अमर ‘पंकज’दिल्ली***************************************************** कड़ा पहरा है मुझ पर तो सँभलकर देखता हूँ मैं,बदन की क़ैद से बाहर निकलकर देखता हूँ मैं। कभी गिरना कभी उठना यही है दास्ताँ मेरी,बचा क्या पास है मेरे ये चलकर देखता हूँ मैं। जिधर देखो उधर है आग छूतीं आसमाँ लपटें,चलो इस अग्निपथ पर भी टहलकर देखता हूँ मैं। बहुत है … Read more

…पत्थर बनाया न होता

डॉ.अमर ‘पंकज’दिल्ली******************************************************** अगर मैं तेरे शह्र आया न होता,तो दिल को भी पत्थर बनाया न होता। उजड़ती नहीं ज़िंदगी हादसों से,अगर होश अपना गँवाया न होता। सँपोले के काटे तड़पता नहीं मैं,अगर दूध उसको पिलाया न होता। बयाँ कैसे करता यहाँ अपना अनुभव,अगर ज़िंदगी ने सिखाया न होता। कभी कह न पाता ग़ज़ल इस तरह … Read more

कभी ढोता नहीं हूँ

डॉ.अमर ‘पंकज’दिल्ली******************************************************************** भीड़ में शामिल कभी होता नहीं हूँ,बोझ नारों का कभी ढोता नहीं हूँ। रात को मैं दिन कहूँ सच जानकर भी,क्यों कहूँ मैं ? पालतू तोता नहीं हूँ। मुल्क़ की बर्बादियों को लिख रहा जो,मैं ही शाइर आज इकलौता नहीं हूँ। झेलता हूँ हर सितम भी इसलिए मैं,हूँ ग़ज़लगो धैर्य मैं खोता नहीं … Read more

रो रहा है आसमां

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** रो रही धरती अभी,रो रहा है आसमां, जल रहा सारा जगत,बुझती हर इक शमा। मौत का मंज़र यहाँ,ख़ौफ़ में सारा जहाँ, साँस सबकी थम रही,बढ़ रही धड़कन यहाँ। कैद घर में आदमी,मिल रही कैसी सजा ? बोल ईश्वर कह खुदा,क्या अभी तेरी रजा ? रोज़ बढ़ता आँकड़ा,मर रहा हर … Read more

समझ तू खेल सत्ता का

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* समझ तू खेल सत्ता का मुक़द्दर बन के आया है, सियासी चाल है ये सब कलंदर बन के आया है। तुम्हें मालूम तो कुछ हो ज़माने भर के आँसू ही, जमा होकर तड़पता सा समंदर बन के आया है। हमेशा तुम रहे लड़ते शहादत भी है दी तुमने, मगर अब जीतकर … Read more

भारतीयता अपनाएं, ‘कोरोना’ भगाएं

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** ‘कोरोना’ से बचाव के लिए पूरी दुनिया आज ताली बजाकर जागरण कर रही है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी २२ मार्च को ताली बजाकर सन्देश देने का आह्वान किया है। बीबीसी की एक रिपोर्ट पर कई लोग कह रहे हैं कि,श्री मोदी का यह विचार(तरकीब)पश्चिमी देशों की नकल है। शायद … Read more

सुलझती ही नहीं रिश्तों की उलझन

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* हवाओं में जो उड़ते हैं कहाँ क़िस्मत बदलते हैं, बड़े नादान हैं जो चाँद छूने को मचलते हैंl फ़ज़ा में रंग है लेकिन नहीं रंगीन है होली, उदासी छा रही हर सू तो क्यों हम रंग मलते हैंl तुम्हारी चीख़ सुनकर भी रहा मैं चुप मगर अक्सर, विवश बेचैन रातों में … Read more

नहीं यह देश है उसका

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** आंदोलन के नाम पे क्या,तुम सारा देश जला दोगे ? घुसपैठियों की ख़ातिर क्या,घर की नींव हिला दोगे ? शासन से मतभेद अगर है,आसन से तुम बात करो- अफ़वाहों के भीड़ तंत्र में,क्या लोकतंत्र झुठला दोगे ? गुंडागर्दी भेड़चाल में क्या,सब-कुछ आग लगा दोगे ? गंगा जमुनी तहज़ीब भुला,खुद … Read more