कबीरा

पंकज त्रिवेदी सुरेन्द्रनगर(गुजरात) *************************************************************************** हरि नाम के वस्तर बुनते मन हरि हरि कबीरा, ताने-बाने बुनते-बुनते ऊठ रही है तान कबीरा। आधे कच्चे,आधे पक्के सूत के दिन ये चार कबीरा, नीले पीले हरे गुलाबी कुछ दिन है ये लाल कबीरा। बुनता कपड़ा ऐसे फैला जैसे चारों वेद कबीरा, इच्छाओं के तार टूटते बाँधे कसकर वो ही … Read more

दौलत और मुहब्बत

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** किसी का दिल नहीं तौलो,कभी धन और दौलत में, नहीं औकात सिक्कों में…खरीदे दिल तिजारत में। नहीं बाज़ार में मिलता,…नहीं दिल खेत में उगता- समर्पण बीज जो बोता,…वही पाता मुहब्बत में॥ तराजू में नहीं तौलो,…किसी मासूम से दिल को, बड़े निश्छल बड़े कोमल,बड़े माशूक़ से दिल को। जरा-सी चोट … Read more

बरसात

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** धरा की देख बैचेनी,पवन सौगात ले लाया, तपी थी धूप में धरती,गगन बरसात ले आया। घटा घनघोर है छाई,लगे पागल हुआ बादल- सजाकर बूंद बारिश की,चमन बारात ले आया॥ फ़ुहारों ने जमीं चूमी,हुई पुलकित धरा सारी, बहारों को ख़िलाकर के,हुई पुष्पित धरा सारी। खिले हैं बाग वन-उपवन,लगे ज्यूँ गात … Read more

दे दूँ वतन के वास्ते

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* (रचनाशिल्प:२२१ २१२१ १२२१ २१२) दे दूँ वतन के नाम कलेजा निकाल कर, थाती शहादतों की रखी है संभाल करl आबाद हो गया है तू जुल्फों की छाँव में, गुज़रे हुए पलों पे कभी मत मलाल करl धरती वही,हवाएँ वही,चाँद भी वही, माज़ी को याद करके तू रिश्ता बहाल करl क्यों ज़हर … Read more

किसको बताएँ

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली *******************************************************************************  (रचना शिल्प:२२१२ २२१२ २२१२ २२१२) किसको बताएँ क्यों जहर जीवन में अब है भर गया, जलती हुई इस आग में वह राख सब कुछ कर गया। वादे सभी हैं खोखले,जब भी हवा थी कह रही, पर था समां ऐसा बना तब बिन कहे जग मर गया। थी जब चली उसकी सुनामी,बाँध … Read more

कोई कैसे समझे

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* (रचनाशिल्प:१२२ १२२ १२२ १२२) कोई कैसे समझे मुसीबत हमारी, मुझे तो पता है विवशता तुम्हारी। सिमटती हुई रौशनी के सहारे, सफ़र है तुम्हारा अँधेरों में जारी। कभी मत कहो ये कि मजबूरियाँ हैं, अँधेरों से लड़ने की आई है बारी। अँधेरों से लड़ते रहे तुम अकेले, सभी सूरमाओं पे तुम ही … Read more

ब़ुत बनाकर

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* (रचना शिल्प:२१२२ २१२२ २१२२) ब़ुत बनाकर रोज ही तुम तोड़ते हो, कर चुके जिसको दफ़न क्यों कोड़ते हो। अब बता दो कौन सी बाक़ी कसक है, आज फिर क्यों सर्द साँसें छोड़ते हो। ख़्वाब सबने तो सुहाने ही दिखाए, बन गई नासूर यादें फोड़ते हो। एक मन मंदिर बना लो उस … Read more

ग्रीष्म ऋतु में खोये हुए हैं हम..

पंकज त्रिवेदी सुरेन्द्रनगर(गुजरात) *************************************************************************** निबंध…… ग्रीष्म की ऋतु अपनी चरमसीमा पर है। वृक्ष भी सूर्य की तपिश के सामने सीना तानकर खड़े होकर अपनी अहमियत सिद्ध करा रहे हैं। वो जानते हैं कि मेरी अटलता और अखंडितता मानवों के लिए प्रेरणा बन सकती है,और यह भी जानता है कि मेरी शीतलता का यह कसौटी काल … Read more

छूटने का बंधन

पंकज त्रिवेदी सुरेन्द्रनगर(गुजरात) *************************************************************************** जब एक कदम आगे बढ़ते हैं हम,एक कदम पीछे छूट जाती हैं ज़मीं। छूटता रहता है सब-कुछ नई राह पर,छूटता है हर कोई इंसान एक रिश्ते से नए रिश्ते के पंख लिए। कितना कुछ छूट जाता है प्रतिदिन हमारे हाथों से,पैरों से,मन से, आत्मा से…! छूटते-छूटते न जाने हम कभी किसी … Read more

आतंक और दो बूंद आँसू

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** उफ़्फ़!! क्या लिखूँ….? कैसे लिखूँ….? इस अबोध की भाँति आज, कलम हमारी थम गयी। देखकर यह तस्वीर रातभर मैं सो नहीं पाया, आँखों से आँसू रोक न पाया क्योंकि मेरा जमीर है जिंदा, मेरी भवनाएं संवेदना है जिंदा कौन होगा ? जो यह दृश्य देख न रोया होगा, क्या … Read more