मानव और मानवता आज के युग में
कविता जयेश पनोतठाणे(महाराष्ट्र)**************************************** जीवन के हर पल-पल पर,समय नया रंग ला रहा हैआज के इस कलयुग में,मानव पिछड़ता जा रहा है।समय के इस परिवर्तन में,सब-कुछ बदलता जा रहा हैसंस्कृति के साथ जुड़ा वो अटूट रिश्ता,जो मानवता का प्रतीक था,अंधविश्वास की डोर में बंधकर,उलझता जा रहा है।समय के परिवर्तन के साथ,सब-कुछ बदलता जा रहा हैवो धर्म,वो … Read more