कविता जयेश पनोत
ठाणे(महाराष्ट्र)
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नारी तुम शक्ति अटल हो,
सृष्टि का तुम भुजबल होl
तुम ही सरिता से सरल रूप-सी,
तुम ही तुंग हिमाचल होl
तुम लहलहाता प्रेम का आँचल हो,
नारी तुम शक्ति अटल होl
तुम ही जगदम्बिका भवानी हो,
तुम ही लक्ष्मीबाई महारानी हो।
तुम ही महादेवी वर्मा हो,
तुम ही कल्याणी हो।
जब-जब आई जीवन में,
तुम रही सबके हृदय में।
घबराई नहीं तुम कभी भी,
जीवन के सघन संकट के पल में।
बनकर सीता तुमने ही,
अपनी अटलता का प्रमाण दिया।
तुमने ही बनकर लक्ष्मी बाई,
देश को गुलामी से आजाद किया।
तुम ही तो हो वो शक्ति संसार में,
बन काली-कल्याणी,असुरों का संहार किया।
नारी तुमने अपने अनुपम रूपों से,
जग में नाम कमाया है।
सुंदरता और कोमलता से,
तुमने ही कुसुम नाम पाया है।
नारी तुम अब क्यों इतनी खो चुकी हो ?
बताओ आज क्यों तुम दुर्गा से अबला हो चुकी हो।
क्यों जीवन के स्वतंत्र आकाश को छोड़,
तुम दुनिया के पिंजरे में कैद हो चुकी हो।
जरा सोचो अपनी विवशता का कारण,
अपने ही जीवन की,बनो मत अभागन।
आज तुम्हें अपने गौरव की कसम,
इस तरह न सहो ओरों के अत्याचारl
बनो न अब हैवानियत की शिकार,
जागो देवी,जागो नारी,अब तो जागो।
समाज की बेड़ियों को तोड़,
अब अपने मान के लिए लड़ो।
देखो कितनी दूर आ गई तुम,
अब पराधीनता के मद को त्यागो।
जागो,इस तरह घुट-घुट कर न करो,
तुम अपने अमूल्य जीवन को खत्म।
उठो,जागो नारी,जागो,
अपनी शक्ति को फिर पहचानो।
अपने सम्मान को फिर से पा,
इस नई सदी को,फिर से महका दोll