डोर
पूनम दुबे सरगुजा(छत्तीसगढ़) ****************************************************************************** क़िस्मत की लकीरें, कुछ अजीब होती हैं कैसे कहें चाहती क्या हैं, बंध जाती कहीं और है। क़िस्मत… रिश्तों की डोर मिली, नन्हीं कली समझने लगी फिर उसी में ढलने लगी, होंठों की हँसी छुपने लगी। क़िस्मत… कुछ सपने भी बिखरे, खामोशी में डूबे चेहरे कब होती दिन-रात ये, छाने लगे … Read more