चाहत
कुँवर प्रताप सिंह कुंवर बेचैन प्रतापगढ़ (राजस्थान) ********************************************************************** चाहा था हमने फूल बनना गुलिस्तां का, पर फूलों को तन्हा छोड़ देते हैं लोग। फूलों के लिए लाजमी है खिल के रहना, मुरझाते ही मुँह अपना मोड़ लेते हैं लोग। यूँ भी मुरझा जाना है चार दिन के बाद, पहले ही जाने क्यूँ फिर तोड़ लेते … Read more