सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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प्यार ‘में ख़तरा नहीं होता किसी नुक़सान का।
यह ही तो सौदा है जग में दोस्तों फ़ैज़ान का।
फूल कलियाँ माहो अन्जुम या के हो यह कहकशाँ,
कोई भी ‘सानी नहीं है आपकी मुस्कान का।
उम्रभर खायी हैं दिलबर झूठी क़समें आपने,
कैसे कर लें हम भरोसा आप ‘के पैमान ‘का।
यह ‘किताबुल्लाह भी है और ‘कलामुल्लाह भी,
इसलिए हर ह़र्फ़ मरवारीद है कुरआन का।
तेरी ‘अदना-सी ‘हँसी से खिलता है दिल का चमन,
ख़ुशनुमा ‘सा फूल है तू ही ‘मिरे गुलदान का।
किस क़दर ‘ऐहसान हम ‘पर आप ‘ने फ़रमाए हैं,
हम चुकाएँ कैसे बदला आपके ऐहसान ‘का।
पर्वतों की वादियाँ हों या के सहरा हों ‘फ़राज़’,
बोल ‘बाला हर कहीं है आज-कल इन्सान का॥