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पापा की बेटी

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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कल की सी बात,
मेरे अंगना
उतरी थी,
जब आसमाँ से
एक नन्हीं-सी परी।
चाँद से उजला
मुखड़ा उसका,
किरणों-सी मुस्कान,
मेरी प्यारी
बिटिया रानी,
थी पापा की जान।
आँखों में,
छलकता उसके
निश्छल पावन प्यार,
जीवन में वो
मेरे लाई,
खुशियों का संसार।
चलती जब वो,
ठुमक-ठुमक कर
घर-आँगन इतराता,
जब वो मुझसे
गले लिपटती,
रोम-रोम खिल जाता।
तुतलाती…
जब पापा कहकर
गोदी में सिमटती,
कभी इधर और
कभी उधर वो,
चिड़िया-सी फुदकती।
उड़ जाता समय,
न जाने कब ?
पंख लगाकर
पता ही न चला।
और आज
मेरी नन्हीं परी,
बैठी है
बन कर दुल्हन।
पापा से बिछुड़ कर
चली जाएगी,
करके पिया से
विवाह लग्न।
होंठों पर वही
निष्छल फूलों-सी,
मनमोहक मुस्कान,
आँखों में वही
हिरणी-सी चंचलता।
देखते ही देखते,
कब बड़ी हो गई
पता ही नहीं चला ?
मेरी नन्हीं-सी
रानी बिटिया को,
ब्याहने कोई
राजकुमार आएगा,
और अपने साथ
बिठा कर डोली में
अपने संग ले जाएगा।
पापा की आँखें बरसेगी
मिलने को बेटी तरसेगी,
देता दुआ
पिता का अंगना,
खनके सदा
बिटिया तेरा कंगना।
रीत चली
सदियों से ये तो,
बेटी सदा पराई होती।
बेटियाँ तो,
होती है चिड़िया
एक दिन तो
उड़ जाना है।
छोड़ कर
बाबुल का अंगना,
पिया का
घर बसाना है॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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