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जिस दिन हीन भावना समाप्त होगी,हिंदी का विकास और होगा

हिंदीभाषा डॉट कॉम ने तीसरी वर्षगाँठ पर किया १२ रचना शिल्पियों को सम्मानित

इंदौर (मप्र)।

सरकार की तरफ से हिंदी के विकास के लिए हिंदी सम्मेलन आयोजित कराने सहित और अन्य प्रयास अनुकरणीय हैं। त्रिभाषा सूत्र है,उससे भी प्रयास जारी है। अपनी भाषा से ही विकास किया जा सकता है। बाहरी देश तकनीकी शिक्षा भी अंग्रेजी में नहीं,मातृभाषा में ही देते हैं। अपनी मातृभाषा के प्रति आत्म गौरव का भाव होना चाहिए। जिस दिन हीन भावना समाप्त होगी,हिंदी का विकास और होगा।
यह महती बात वरिष्ठ साहित्यकार और फिल्म गीतकार डॉ. कुँवर बेचैन(उप्र) ने बतौर विशेष अतिथि कही। अवसर था लोकप्रिय मंच हिंदीभाषा डॉट कॉम की तीसरी वर्षगाँठ पर ‘हिंदी का वर्चस्व और ऑनलाइन प्लेटफार्म’ विषय पर आयोजित ऑनलाइन ई-गोष्ठी व सम्मान समारोह का।
डॉ.बेचैन ने कहा कि,अलग-अलग भाषाओं को अपनाना गलत नहीं,पर अपनी भाषा से प्रेम रखना होगा। अंग्रेजी में अनुवाद से मौलिकता को ठेस लगती है। ‘गोदान’ में मुंशी प्रेमचंद ने जो लिखा,वह बात अनुवाद में नहीं आ सकती। हिंदी से नौकरी पर संकट नहीं है। यह धारणा ग़लत है। आपने इस अवसर पर एक गीत-‘प्यार की भाषा है हिंदी…’ सुनाकर खूब दाद बटोरी।

गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. सोनाली नरगुंदे (विभागाध्यक्ष-पत्रकारिता अध्ययनशाला,देवी अहिल्या विश्वविद्यालय,इंदौर एवं संयोजक सम्पादक-हिंदीभाषा डॉट कॉम) ने करते हुए संचालन का धर्म भी निभाया। इस मौके पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार एवं श्री अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल (मप्र)के कुलपति डॉ. राम देव भारद्वाज ने विस्तार से अपनी बात रखी। आपने आयोजन के लिए पोर्टल को बधाई देते हुए कहा कि,रचनाकारों के साथ जनसामान्य को भाषा से, साहित्य सर्जन संस्कृति को अवगत कराने में उत्कृष्ट भूमिका निभा रहा है। आज जो अंग्रेजी बोलता है, उसे अधिक मान दिया जाता है। हमारा परिवार अंग्रेजी प्राप्त नहीं करेगा तो अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी,लालच इस बात का है,जबकि हिंदी का व्यापक क्षेत्र है। हिंदी के समाचार पत्रों की स्वीकार्यता बड़ी है। बॉलीवुड सहित अन्य भाषाओं की फिल्मों का हिंदी में डब होना इसे सिद्ध करता है। प्रधानमंत्री हिंदी में बात करते हैं। इससे हिंदी का मान बढ़ा है। भाषा का विकास कोई अकादमिक नहीं कर सकता।

पोर्टल के संस्थापक-सम्पादक अजय जैन ‘विकल्प’ ने मंच द्वारा संचालित गतिविधियों की जानकारी दी। सह-सम्पादक श्रीमती अर्चना जैन ने बताया कि,कोरोना संक्रमण की वजह से इस बार यह आयोजन ऑनलाइन ही किया गया,जिसमें बड़ी संख्या में देशभर से रचनाकार शामिल हुए।

संवेदना के द्वार खोलती है हिंदी

दूसरे सत्र में ‘हिंदी और रचनात्मकता ऑनलाइन’ विषय पर प्रसिद्ध साहित्यकार एवं चंद्र दास रिसर्च इंस्टीट्यूट (बांदा,उप्र) के राष्ट्रीय महानिदेशक डॉ. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ‘ललित’ ने बात की। डॉ. दीक्षित ने कहा कि,हिंदी संवेदना के द्वार खोलती है। हिंदी भाषा में बहुत विकास की संभावनाएं बनी हुई है। यह किसी से किसी भी स्तर पर कम नहीं है। हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सबको मिल-जुल कर प्रयास करने होंगे।
इसी विषय पर विशेष अतिथि डॉ. दयानंद तिवारी (राष्ट्रीय साहित्यकार एवं विभागाध्यक्ष-यसआईडब्ल्यूयस महाविद्यालय-मुम्बई,महाराष्ट्र)ने कहा कि,मेरा अनुभव है कि कोई लेखन नया नहीं होता है। इसमें कोई वरिष्ठ और कनिष्ठ नहीं होता है। अगर कोरोना काल और विषय की बात करूं तो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से बड़ा फायदा हमें मिला है। आज ऑनलाइन भी अनेक पत्र-पत्रिकाएं निकल रहे हैंजिससे कोई रचनाकारों को अवसर मिला है। अगर ऑनलाइन की यह व्यवस्था नहीं होती तो निश्चित रूप से ऐसा नहीं होता। इसलिए रचनात्मकता और ऑनलाइन में गहरा संबंध है।

इनका हुआ सम्मान

इस समारोह में रचनाशिल्पी सर्वश्री गोपाल मोहन मिश्र(बिहार), राजबाला शर्मा ‘दीप’ (राजस्थान),डॉ. एन. के. सेठी(राजस्थान),डॉ.वंदना मिश्र ‘मोहिनी’ (मप्र),गोपाल चन्द्र मुखर्जी(छग),बोधन राम निषादराज ‘विनायक'(छग),डाॅ.पूर्णिमा मंडलोई (मप्र),डॉ.प्रो.शरद नारायण खरे (मप्र),संजय गुप्ता ‘देवेश'(राजस्थान),डॉ. रामकुमार निकुंज (दिल्ली) एवं मधु मिश्रा (ओडिशा) को सतत उत्कृष्ट लेखन हेतु ‘हिंदीशिल्पी-२०२०’ सम्मान से अभिनंदित किया गया। इसी कड़ी में सतत लोकप्रिय रचनाशिल्पी राजू महतो (झारखंड) को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। सभी का आभार सम्पादक अजय जैन ‘विकल्प’ ने माना।

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