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कर्तव्यों को नहीं निभाते तो अधिकारों का कोई महत्व नहीं

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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मौलिक अधिकार राज्य के अपने नागरिकों के प्रति कर्तव्यों को दर्शाता है,वहीं मौलिक कर्तव्य राज्य के नागरिकों से यह अपेक्षा करता है कि वे भी राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाएंगे। प्रसिद्ध आदर्शवादी पाश्चात्य विचारक टीएच ग्रीन का कहना था,-‘अधिकार और कर्तव्य एक सिक्के के दो पहलू हैं।’
अधिकारों का कोई महत्व नहीं रह जाता,जब हम केवल कुछ पाना चाहते हैं और अपने कर्तव्यों को नहीं निभाते। भारतीय संस्कृति भी कर्तव्य पालन पर जोर देती रही है। गीता में कहा गया है ‘कर्मण्ये वाधिकारस्ते’ अर्थात कर्म में ही व्यक्ति का अधिकार है।
२६ नवंबर २०१९ को भारतीय संविधान को अंगीकार किए जाने की ७०वीं वर्षगांठ पर संसद के संयुक्त अधिवेशन में सांसदों को संबोधित करते हुए भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इस बात पर जोर दिया कि अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे से बड़ी गहराई से जुड़े हुए हैं।
जैसे यदि भारत का संविधान सभी नागरिकों को भाव अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है,तो उन पर ये कर्तव्य भी अपेक्षित करता है कि वे सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुंचाएं और हिंसा के कार्यों से दूर रहें। यदि कोई अन्य नागरिक उन्हें हिंसा और तोड़-फोड़ से रोकता है तो वह एक कर्तव्यपरायण नागरिक है। जब एक नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करता है तो वे परिस्थितियां स्वयं उत्पन्न होती हैं,जहां उसके और अन्य नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण हो सके।
संविधान में उल्लिखित ये मूल कर्तव्य नागरिकों के आचार और व्यवहार के कुछ नियम तय करते हैं। वैसे ये प्रावधान कानूनी नहीं हैं,केवल व्यक्ति के नैतिक दायित्व हैं,परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने एक नागरिक को अपने कर्तव्य के उचित पालन के लिए सक्षम बनाने को लेकर राज्य को इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं।
वर्मा समिति और मौलिक कर्तव्य सर्वोच्च न्यायालय ने मई १९९८ में भारत सरकार को एक अधिसूचना जारी की कि राज्य का कर्तव्य है कि वह मौलिक कर्तव्य के बारे में जनता को शिक्षित करें,ताकि अधिकार तथा कर्तव्य के मध्य संतुलन बन सके। इस अधिसूचना के बाद भारत सरकार ने जस्टिस जेएस वर्मा समिति का गठन किया,जिसके प्रमुख कार्यों में यह था कि समिति प्राथमिक, माध्यमिक,उच्च माध्यमिक एवं विश्वविद्यालय के स्तर पर मौलिक कर्तव्य की शिक्षा के लिए विषय वस्तु विकसित करें।
वर्मा समिति ने पाया कि देश में मौलिक कर्तव्यों के प्रति जन सामान्य में जागरूकता की कमी है. समिति ने मूल कर्तव्यों के क्रियान्वयन के लिए कानूनी प्रावधानों को लागू करने की सिफारिश की।
वैसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक अवसरों पर कहा है कि मौलिक कर्तव्यों के पालन के लिए रणनीति बनाना कार्यपालिका या सरकार का दायित्व है। सरकारें इस दिशा में समय-समय पर कानून भी बनाती रही हैं जो वन संपदा के अनुचित दोहन,राष्ट्रीय अखंडता,राष्ट्र गान,राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करने,स्त्रियों के प्रति हिंसा और अपराध,बालकों की शिक्षा आदि के संबंध में हैं।
कुछ समय पहले ही उत्तर प्रदेश की सरकार ने कुछ कठोर कानून बनाए हैं जो दंगों आदि की परिस्थिति में सार्वजनिक संपत्ति और वाहनों को नुकसान पहुंचाने पर उनकी भरपाई से संबंधित हैं।कई कानूनों पर विवाद भी उठते रहे हैं,लेकिन यदि समग्र रूप में देखा जाए तो नैतिक और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा राज्य द्वारा कठोर कानूनों को बनाने मात्र से नहीं होती बल्कि अपने नागरिकों को ऐसी परिस्थितियां उपलब्ध करवाने से होती है जिनमें इन गुणों का स्वतः विकास हो सके। चेतना-जाग्रति का यह काम शिक्षा द्वारा किया जा सकता है। शिक्षा ऐसी हो जो विद्यार्थियों में मानवीय गुणों,नैतिक और संवैधानिक मूल्यों का संचार करे। उनका समग्र विकास करके उन्हें सच्चे अर्थों में मानव बनाए।हमारी नई शिक्षा नीति सर्वांगीण विकास की इसी अवधारणा पर आधारित है। हम इन लक्ष्यों को कितना और कैसे प्राप्त करेंगे,यह तो इसका सही समय पर सही क्रियान्वयन ही बताएगा।

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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