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खुद को बनाना पड़ेगा भूतपूर्व नौजवान

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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साठ वर्ष से ऊपर के हो गए तो क्या हुआ! अपने को बूढ़ा तो नहीं समझते न,समझना भी नहीं है। क्या कहा-लोग कहते हैं,लोगों की परवाह मत करो, लोगों का काम है कहना। अरे!सेवानिवृत्त ही तो हुए हो,थके तो नहीं।
थकना भी नहीं है,जो काम स्वयं कर सकते हो,वह स्वयं करना ही है। बार- बार पत्नी को हर छोटे-बड़े काम के लिए मत कहते रहो। दो-तीन साल बाद उसने भी साठ से ऊपर का हो जाना है। हर हाल में शरीर को तो दोनों को चलायमान रखना ही है,इस हाल में तो सन्तान फिर भी कभी कभार पूछ लेगी, असहाय के लिए तो घर में एक बस कोना ही रह जाता है,और अतीत का सिमरन,वर्तमान का रुदन,भविष्य का निरर्थक चिंतन। अतः, प्रभु भजन में मस्त रहकर बस यही प्रार्थना करो कि इस संसार से विदाई चलते-फिरते ही हो।
आज के समय में अपेक्षा मत रखो,उपेक्षा का भान ही नहीं होगा। आपने अपने फर्ज़ पूरे किए,उनको उनके फर्ज़ पूरे करने दो! आखिर तुम किसी से कम हो क्या ? अरे भई,भूतपूर्व नौजवान हो,नौजवान,आज भी वैसे ही जोश से भरे रहना है। बिस्तर पर बैठ गए तो ये लोग तुम्हें सुला देंगे,नये-नये प्रलोभन से तुम्हें लुभा,नज़र तुम्हारी धन-दौलत व सम्पत्ति पर रखेंगें और उनका मन्तव्य पूरा होने पर तुम दोनों कुछ दिन बहुत ही अच्छा महसूस करोगे,बाद में मनहूस बन कर रह ही जाओगे । ऐसा सब जगह नहीं है,कुछ अपवाद भी हैं, यही अपवाद ही तो आपसी प्रेम-प्यार सदभाव,समझ,सामंजस्य,समन्वय से भरे पारिवारिक सौंदर्य को एक नया रूप देते हैं और सम्भावनाओं के आकाश को,जहाँ परवाह है,वहीं ही परिवार है,की मधुर
भावनाओं से परिपूर्ण कर देते हैं।
जरूरी नहीं कि,हमेशा बुरे कर्मों की वजह से ही दर्द सहने को मिले,कई बार हद से ज्यादा, अच्छे होने की कीमत चुकानी पड़ती है, इसका अर्थ यह नहीं कि हम भी बुरे हो जाएं। नहीं,कदापि नहीं,अच्छाई का दामन कभी नहीं छोड़ना,सत्य व अच्छाई का सूरज भले ही कुछ देर के लिए बादलों से ढक जाए,पर बादल छंटते ही दैदीप्यमान होकर फिर चमक बिखेरेगा ही। यह सब-कुछ मन के ही विश्वास व दृढ़ निश्चय पर निर्भर है,इसे टूटने नहीं देना है,डिगने नही देना है। यही अमिट सत्य है,यही सच्चाई है कि प्रिय जीवनसंगिनी के साथ मिल कर तुम एक और एक दो नहीं, ग्यारह हो।
जीवन की इस सच्चाई को गहरे से समझ लो कि बच्चे वसीयत पूछते हैं,रिश्ते हैसियत पूछते हैं व दोस्त खैरियत पूछते हैं। आज तुम्हारे हमउम्र दोस्तों में से अधिकांश की हालत तुम्हारे जैसी ही है। उन्हीं में से ऐसे दोस्त ढूंढ लो जो दोस्ती का मतलब न पूछे, क्योंकि जहाँ दोस्ती है,वहां मतलब कहां है।
काम की बात यह कि नौकरी या व्यापार से निवृत्त को हर सूरत में अपने पास एक पर्याप्त सुरक्षित निधि रखनी ही चाहिए, जिसके ब्याज से वह सुखद जीवन जी सके। बहुत तकलीफ में सुरक्षित निधि ही सहारा होती है। पेंशन की राशि तो रोजमर्रा के खर्च में लग जाती है। निजी क्षेत्र में तो पेंशन है ही नहीं,कुछ सरकारी उपक्रमों व निजी कारखानों में पेंशन बहुत ही कम है। निधि व ग्रेच्यूटी ही सहारा होती है। भावुकता या आवेश में कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए।
रोज़गार के सिलसिले में सन्तान अधिकतर परिवार सहित बाहर ही चली जाती है,ऐसे में एकाकी जीवन तो बुढ़ापे का ही पर्याय बन गया है। सन्तान साथ भी हो तो आजकल बच्चों,पत्नी व उसके परिवार में वो इतने मशगूल होते हैं,कि स्वयं के माँ-बाप तो उपेक्षित सा महसूस करते हैं। अतः निवृत्ति से पहले व बाद में तन को स्वस्थ तथा निरोग रखना है,तभी आप लम्बे समय तक सक्रिय रह पाएंगे। जो शौक व अभिरुचियाँ तब व्यस्त दिनचर्या के कारण नहीं कर पाए, उनको पूरा करने का यह स्वर्णिम अवसर है, समाजसेवा व धार्मिक कार्यो में भी स्वयं को व्यस्त रखा जा सकता है।
सेवानिवृत्ति के बाद जीवनसाथी का आपस में मधुर व्यवहार,सामंजस्य का होना जीवन को सरल आनंदमय व उज्ज्वल बना देता है, पर जब जीवनसाथी में से एक चला जाता है, तो बच्चों पर निर्भरता बहुधा अवसाद का कारण बन जाती है। ऐसे में स्वयं का मानसिक व शारीरिक रूप से ठीक रहना बहुत जरूरी है। हर हालत में,हर हालात में स्वयं को यह एहसास कराना होगा-“तुम बूढ़े नहीं हो,भूतपूर्व नौजवान हो।'”

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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