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हिन्दी जन-जन की भाषा,पर राष्ट्रभाषा कब ?

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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हिंदी दिवस विशेष…..

हम भारतवासी ‘हिंदी दिवस’ एक औपचारिकता के रूप में कब तक मनाते रहेंगे ? कब हिंदी इस आडम्बर से मुक्त होगी। कब राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनेगी,जन-जन की भाषा घर-घर तक कब घर करेगी। हिंदी के प्रति आम लोगों में जनचेतना जागृत करने के लिए सरल सुबोध हिंदी में विशाल स्तर पर प्रचार करना होगा। सिनेमा व टी.वी. चैनलों की भूमिका,सोशल मीडिया ने हिंदी को बढ़ावा तो दिया पर ‘हिंग्लिश’ भारत की हिंदी पर हावी हो रही है। यह हिंदी के ही तथाकथित परम विद्वानों की भाषिक अक्षमता व अपनी भाषा के प्रति लापरवाही है। हम गर्व,गरिमा,गौरव,अभिमान,स्वाभिमान के साथ हिंदी का प्रयोग क्यों नहीं करते ?
ब्रिटेन,चीन,जापान,फ्रांस,अमेरिका जैसे देश तो अपनी भाषा को अपनी अस्मिता का प्रतीक ही समझते हैं।
क्या कभी हमने अंग्रेजों को अंग्रेजी दिवस मनाते सुना है ? हिंदी के साथ यह परम्परागत व्यवहार कब तक चलेगा। हमारी शिक्षा प्रणाली अंग्रेजी पर ही आधारित है,जो भाषा शिक्षा का माध्यम होती है,वही भाषा किसी भी समाज में सम्प्रेषण या वैचारिक आदान-प्रदान की भाषा स्वाभाविक रूप से बन जाती है। यह अभिजात वर्ग की ही नहीं, समूचे बुद्धिजीवी वर्ग की भाषा बन गई है। अंग्रेजी सुसंस्कृत और सुसभ्यता का प्रतीक बन कर उभरी है हमारे देश में! हिंदी को पिछड़े समाज की भाषा के रूप में परिगणित किया जाने लगा,जिसका मुखर रुप से कोई विरोध नहीं करता है,इस
विसंगति को दूर करना ही होगा। आखिर,जन-जन की भाषा-हिंदी,दुलारी हिंदी मनभावन हिंदी,करोड़ों लोगों के हृदय की स्पंदन कैसे पीछे रह सकती है।
हिन्दी वैज्ञानिक रुप से भी एक समृद्ध भाषा है,हम सब हिंदी प्रेमियों को स्वयं आगे बढ़ कर बदलते परिवेश में,हर नई तकनीक को अपना कर,पूरे भारतवर्ष को हिन्दीमय बनाना होगा। भारत में ५२ करोड़ से अधिक लोगों की प्रथम भाषा हिन्दी है। १० साल में हिन्दी भाषी १० करोड़ बढ़ गए,५ साल में दक्षिण में हिन्दी सीखने वाले २२ फीसदी तो इंटरनेट में हिन्दी 94 फीसदी की दर से बढ़ रही है। ६८ प्रतिशत लोगों ने हिन्दी पर भरोसा जताया, फिर भी भारतीय प्रशासनिक सेवा व अन्य इसी स्तर की परीक्षाओं में हिन्दी माध्यम का चयन करने वाले बहुत कम हैं। १८ करोड़ के लगभग लोग हिंदी कम जानते हैं,पर सिनेमा, टी.वी. चैनल,गूगल,यू ट्यूब,ई- पत्र-पत्रिकाओं का व्यापक प्रयोग हिंदी को जन-जन के समीप ले आया है। दूरियां सिमट गई है, अपनापन दृष्टिगोचर हो रहा है,यही तो हिंदी की व्यापकता की वास्तविक सफलता है।
आज विदेशी हिंदी गहनता से,उत्सुकता से सीख रहे हैं और हम क्या कर रहे हैं ? हमें तो अपने अंदर की शक्ति को ही पहचानना है, स्वयं को यह एहसास कराना होगा-‘हम उफनती नदी हैं, हमको अपना कमाल मालूम है,हम जिधर भी चल देंगे,रस्ता अपने-आप बन जाएगा।’
यह भी एक विडंबना ही है कि हिंदी दिवस अधिकतर श्राद्ध के दिनों में ही आता है। हमें मानसिक रुप से अंग्रेजी का श्राद्ध कर हिंदी के प्रति अगाध श्रद्धा रखनी है।
हिंदी हमारे हृदय की धड़कन है। नित-नए बदलाव के इस युग में हिंदी के वर्चस्व की संभावनाएं अनंत हैं। नित नई आशाएं जन्म लेंगी और लेतीं रहेंगी और जब आशाएं
परिपूर्ण होंगी,हिंदी जन-जन का आधार होगी, माँ भारती का श्रंगार होगी। राष्ट्र की अस्मिता का प्रतीक होगी। जब तेज़ से परिपूर्ण इसकी आभा दैदीप्यमान होगी,तभी हमारा हर दिन हिंदी दिवस होगा,हिंदीमय होगा। यह काम कुछ भी तो मुश्किल नहीं,बस जरूरत है,इक जज़्बे की मजबूत इरादे की।

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैL जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैL आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैL हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैL आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैL सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैL आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैL १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैL प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैL इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैL आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंL प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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