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आनंद,स्नेह व श्रीगणेश का प्रतीक वसंत पंचमी

वर्षा तिवारी
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..

वसंत पंचमी का पर्व ज्ञान तथा विद्या की देवी माँ सरस्वती को समर्पित है। वसंत पंचमी वसंत ऋतु की शुरूआत का प्रतीक है। वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती जी का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदी भाषा में वसंत पंचमी का एक विशिष्ट अर्थ है,बसंत-वसंत का अर्थ है-बसंत ऋतु तथा पंचमी का अर्थ है पाँचवे दिन। संक्षेप में वसंत पंचमी को वसंत ऋतु के पाँचवे दिन के रूप में मनाया जाता है।
बसंत पंचमी पर फसलें-गेहूँ,जौ,चना आदि तैयार हो जाती है,इसलिए इसकी ख़ुशी में बसंत पंचमी का त्योहार मनाते हैं। संध्या के समय बसंत का मेला लगता है,जिसमें लोग एक-दूसरे को गले से लगाकर स्नेह,मेल-जोल तथा आनंद का प्रदर्शन करते हैं। कहीं-कहीं पर बसंती रंग की पतंगें उड़ाने का कार्यक्रम बड़ा ही रोचक होता है। इस पर्व पर लोग बसंती कपड़े पहनते हैं,बसंती रंग का भोजन करते हैं तथा मिठाइयाँ बाँटते हैं। यह पर्व भारत के साथ-साथ पश्चिमोत्तर बांग्लादेश और नेपाल में भी धूमधाम से मनाया जाता है। यह भी माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही सिख गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ था। इस पर्व के महत्व का वर्णन पुराणों और अनेक धार्मिक ग्रंथों में विस्तारपूर्वक किया गया है। खासतौर से देवी भागवत में उल्लेख मिलता है कि,माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत,काव्य,कला,शिल्प,रस,छंद,शब्द शक्ति जिह्वा को प्राप्त हुई थी।
विद्यार्थियों के लिए भी यह त्योहार बहुत आनंददायक होता है। इस दिन भारत के सभी विद्यालयों-महाविद्यालयों में सरस्वती पूजा होती है और शिक्षक विद्यार्थियों को विद्या का महत्व बताते हैं। पूरे उल्लास के साथ पढ़ने की प्रेरणा देते हैं।भारत के पूर्वी प्रांतों में तो इस दिन घरों में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है। अगले दिन मूर्ति को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। वसंत पंचमी पर पीले वस्त्र पहनने, हल्दी से सरस्वती की पूजा और हल्दी का ही तिलक लगाने का भी विधान है।
इस दिन क्यों ख़ास है पीला रंग ?,तो उत्तर यह है कि,पीले रंग को शुद्ध और सात्विकता का प्रतीक मना जाता है। यह सादगी के साथ निर्मलता को भी दर्शाता है। पीला रंग समृद्धि का सूचक भी है। वसंत ऋतु पर सरसों की फसलें खेतों में लहराती है तो वो भी पीले रंग में ही सजी होती हैं। फसल पकती है और पेड़-पौधों में नई कोपलें फूटती है,जो प्रकृति- खेतों को पीले सुनहरे रंगों से सजा देती है जिससे पृथ्वी पीली-सी दिखाई देती है। वजह यही है कि इस दिन लोग पीला रंग ही पहनना पसंद करते है। केवल पहनावा ही नहीं,खाद्य पदार्थ में भी पीले चावल(केसरिया भात),पीली मिठाइयाँ,पीले लड्डू और केसर युक्त खीर का सेवन किया जाता है।
अब जरा वसंत पंचमी का पौराणिक महत्व भी देखें-शास्त्रों में वसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है। शास्त्रों तथा अनेक काव्य काव्य ग्रंथों में भी अलग-अलग ढ़ंग से इसका विवरण मिलता है। प्रत्येक वर्ष माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाए जाने वाले इस त्योहार के दिन ही ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्माजी ने सरस्वती की रचना की,जिसके बारे में पुराणों में यह उल्लेख मिलता है कि सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की पर अपने प्रारंभिक अवस्था में मनुष्य मूक था और धरती बिलकुल शांत थी। ब्रह्माजी ने जब धरती को मौन और नीरस देखा तो विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमण्डल से जल लेकर छिड़का। जलकण बिखरते ही उसमें कम्पन होने लगा,इसके बाद एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह शक्ति चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी,जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था,अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। यह शक्ति सरस्वती जी कहलाईं। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। उनके द्वारा वीणा का तार छेड़ते ही तीनों लोकों में कम्पन हो गया और सबको शब्द और वाणी मिल गई।
इस दिन नए काम की शुरूआत भी अच्छी मानी गई है। वसंत पंचमी का दिन शुभ होने से किसी भी नए कार्य की शुरुआत की जा सकती है,विशेषकर वे कार्य जो विद्या एवं ज्ञान के अर्जन या संगीत सीखने से संबधित हों। इसके अलावा कई दूसरे नए काम का भी प्रारम्भ किया जाता है। जिन व्यक्तियों को गृह प्रवेश के लिए कोई मुहूर्त ना मिल रहा हो, वह इस दिन प्रवेश कर सकते हैं। कोई अपने नए व्यवसाय को आरम्भ करने के लिए शुभ मुहूर्त को तलाश रहा हो तो वह वसंत पंचमी के दिन आरम्भ कर सकता है। इसी प्रकार इस दिन कई नए कार्यों का आरंभ किया जाता है।

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