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हैवानों के खिलाफ `सज़ा याचिका` का अधिकार मिलना चाहिए

मानवाधिकार आयोग को हमेशा आतंकवादी, उग्रवादी और दरिंदों की मौत पर ही क्यूँ चिंता होती है। निर्दोष नागरिक,पुलिस जवान और `निर्भया`-`दिशा` जैसी बलात्कार पीड़ितों की चिंता क्यूँ नहीं करती ?
आज दुष्कर्मियों की मौत पर जितना तेजी से संज्ञान लिया,काश! कि,मासूमों के साथ दुष्कर्म और फिर हत्या पर संज्ञान लेकर सज़ा सुनवाने का दबाव बनाता! `निर्भया` मामले को ७ वर्ष से लटकाने पर संज्ञान लेता! मुख्य आरोपी को अल्पसंख्यक नाबालिग कह कर बचाने के मामले पर संज्ञान लेता! याकूब मेनन के लिए आधी रात को अदालत खुलवाने पर संज्ञान लेता…!
आज जो भी व्यक्ति या संस्था बलात्कारियों की मुठभेड़ मे मौत पर सवाल खड़ा कर रहा है,वह भी दिमागी तौर पर कमजोर है।
हैदराबाद उच्च न्यायालय ने भी तुरन्त स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई की तारीख तय कर दी। सवाल यह है कि,जब एक लड़की का दुष्कर्म कर उसे जिंदा जला दिया गया,तो ९ दिन तक अदालत क्या कर रही थी ? 
टुच्चे ओवेसी के मुँह से `दुष्कर्म` पर कोई शब्द नहीं निकला,लेकिन  मुठभेड़ में मौत को गलत बताने के लिए बोलता फिर रहा है।बहुत सही कहा राष्ट्रपति कोविंद ने कि, अपराधियों को दया याचिका दायर करने का अधिकार खतम कर देना चाहिये। अरे,जिसने किसी की आत्मा को मारकर उसे जिंदा जला दिया,किसी की जिंदगी को ही खत्म कर दिया,उसका कैसा `मानव अधिकार` ? किस बात की `दया` ? जिस तरह एक किसी अपराधी को दया याचिका दायर करने का अधिकार है,उसी तरह बलात्कार पीड़िता के परिजनों को भी निश्चित समय के भीतर इंसाफ या फिर अपराधियों को अपने हाथ से सजा देने का अधिकार मिलना चाहिये। इसके लिए उन्हें भी अदालत या राष्ट्रपति के पास `सज़ा याचिका` दायर करने का अधिकार मिलना चाहिए।
 

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