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बलिदान दिखाई देता था

ओमप्रकाश मेरोठा
बारां(राजस्थान)
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राणा की वीर भुजा पर बलिदान दिखाई देता था,
चेतक की स्वामी भक्ति पर अभिमान दिखाई देता था।

रण बन्कुर में रणभेरी जब -जब बजाई जाती थी,
राणा के संग चेतक की पीठ सजाई जाती थी।

युद्धभूमि में जब राणा सिंहों से गरजा करते थे,
दुश्मन के ऊपर जब मेघों से बरसा करते थे।

शत्रु राणा को देख पहले ही डर जाता था,
पल भर में राणा का भाला छाती में धस जाता था।

रणभूमि में केवल तलवारों की टंकार सुनाई देती थी,
कटते दुश्मन की मुण्डों की चीत्कार सुनाई देती थी।

पवन वेग से तेज सदा चेतक दौडा करता था,
दुश्मन देख उसे रण को छोड़ा करता था।

राणा और चेतक जहाँ से निकल जा जाया करते थे,
शत्रु के पौरुष वहीं धरा पर गिर जाया करते थे।

रण बीच घिरे थे राणा दुश्मन भी भौंचक्के थे,
देख चेतक की ताकत को सब के हक्के-बक्के थे।

युद्ध भूमि में जब शंखनाद हो जाता था,
राणा के अन्दर काल प्रकट हो जाता था।

राणा का वक्षस्थल जिस दिशा में मुड़ जाता था,
चेतक उसी दिशा में हिम गिरि-सा अड जाता था।

विश्व पटल पर तेरी चर्चा अब हर कोई गाएगा,
चेतक की स्वामी भक्ति पर जन-जन शीश नवाएगा॥

परिचय-ओमप्रकाश मेरोठा का निवास राजस्थान के जिला बारां स्थित छबड़ा(ग्राम उचावद)में है। ७ जुलाई २००० को संसार में आए श्री मेरोठा ने आईटीआई फिटर और विज्ञान में स्नातक किया है,जबकि बी.एड. जारी है। आपकी रचनाएं दिल्ली के समाचार पत्रों में आई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में भारत स्काउट-गाइड में राज्य पुरस्कार (२०१५)एवं पद्दा पुरस्कार(२०२०)आपको मिला है।

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