कुल पृष्ठ दर्शन : 306

You are currently viewing ‘माँ’ याद आ जाती है…

‘माँ’ याद आ जाती है…

ओमप्रकाश मेरोठा
बारां(राजस्थान)
*********************************************************************

‘अन्तर्राष्ट्रीय मातृत्व दिवस’ १० मई विशेष……….


जब मैं छोटा था तो माँ कहती थी
कि ‘जब बिल्ली रास्ता काटे तो बुरा होता है,
वहीं रुक जाना चाहिए…
मुझे आज भी ख्याल आ जाता है।
जब बिल्ली रस्ते में आ जाती है,
तो में वहीं रुक जाता हूँ…
क्योंकि मुझे माँ याद आ जाती है।
मैं शगुन-अपशुगुन को नहीं मानता,
मगर मैं माँ को मानता हूँ…॥

जब मैं स्कूल जाता तो माँ कहती थी
कि- ‘बेटा माता-पिता का आशीर्वाद लेकर जाया करो
तुम क्लास में फर्स्ट आओगे…।’
वही बात मुझे आज भी याद आ जाती है,
जब मैं घर से बाहर जाता हूँ तो
मेरी ‘माँ’ याद आ जाती है…॥

और जब मुझे नींद नहीं आती थी तो,
माँ नहीं सोती थी,मेरे साथ जागती रहती थी
बैठी रहती थी,लोरियाँ सुनाया करती थी।
मुझे आज भी माँ की याद आ जाती है,
जब मेरी आँख नहीं मींचती है…॥

होती है क्या चीज माँ ये भला कौन जाने ?
ये तो उस छोटे बच्चे से पूछो,
जिसे माँ का प्यार कभी नसीब नहीं हुआ हो।
बड़े होकर भूल गए सब,माँ होती है क्या!
अरे,याद करो उस रात को…
जब खुद गीले में सोई थी,
और सूखे में तुम्हें सुलाया था।
माँ,
मेरा पहला प्यार,मेरी माँ॥

परिचय-ओमप्रकाश मेरोठा का निवास राजस्थान के जिला बारां स्थित छबड़ा(ग्राम उचावद)में है। ७ जुलाई २००० को संसार में आए श्री मेरोठा ने आईटीआई फिटर और विज्ञान में स्नातक किया है,जबकि बी.एड. जारी है। आपकी रचनाएं दिल्ली के समाचार पत्रों में आई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में भारत स्काउट-गाइड में राज्य पुरस्कार (२०१५)एवं पद्दा पुरस्कार(२०२०)आपको मिला है।

Leave a Reply