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तुम संग जुड़े नेह के तार

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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तुम संग जुड़े नेह के तार और आरम्भ हुआ नव जीवन,
तुम्हारा स्पर्श उस तार को,बजने लगा फिर मेरा मन…
ऐसा प्रतीत होने लगा था सुवासित हुआ कोई उपवन,
कम्पित-सी हुई मेरी साँसें,झंकृत-सा होने लगा यह तन।

आँखों के पथ से गुजर कर कब जुड़ गए नेह के तार,
अजनबी थीं तुम,पल में बनी सूने जीवन की बहार…
ये प्रेम निवेदन,पलकें झुका कर तुमने किया स्वीकार,
फिर बंध गए जीवनभर को,बन एक-दूजे का आधार।

नेह के तार जरा कस दिए,तुमने जो प्रेम की डोर से,
जन्मों की वह प्यास बुझी और शीतल हो गई अगन…
नेह के तार और बजा रही,तुम अंगुलियों के पोर से,
तुम्हें सम्पूर्ण खुद में बसा,हर्षित हुआ मेरा कण-कण।

जुडे हैं जब नेह के तार , उत्पन्न हुआ अदभुत संगीत,
अजनबी थीं तुम,पल में बन गई इस जीवन की मीत,
खिली कली तो भंवरा भी,गुनगुनाने लग गया गीत,
दिन दूनी-रात चौगुणी-सी,बढ़ने लगी हमारी प्रीत॥

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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