राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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लगभग डेढ़ माह से पूरे देश में नागरिकता पर चर्चा,प्रदर्शन,आंदोलन,हिंसा,आरोप-प्रत्यारोप के कारण नकारात्मकता का इतना विषैला वातावरण हो रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता व्यक्त कर कठिन दौर में शान्ति बनाए रखने की अपील की है। यह कैसी विडम्बना है कि संसद द्वारा पारित कानून की संवैधानिकता पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं। न्यायालय तो कानून की वैधानिकता तय कर सकता है,वो भी तब,जब उसे ले कर चल रहा हिंसात्मक माहौल शांत हो। यह बात तो पूर्णतया सत्य है कि इस कानून को पारित कराने में सरकार ने जल्दबाजी भी की और सभी दलों-पक्षों को विश्वास में नहीं लिया। एक न्यायोचित दिखने वाले कानून का इतना उग्र विरोध होगा,इसका अपने को महा चाणक्य समझने वाले अमित शाह को भी अंदेशा नहीं था। जब मामला सिर के ऊपर से गुजर गया तो अब घर घर जा कर समझाने का क्या लाभ ? अभी भी न तो हिंसा थमी,न ही भ्रम दूर हो पाया। विपक्षी दल, विश्वविद्यालयीन छात्र,कुछ आम जनता कानून की सही भावना को समझे बिना आंदोलनरत है। हर कोई अपनी अपनी बात अपने- अपने तर्क से सही साबित करने में लगा है।
इस कानून को पारित करने से पहले विपक्ष की संयुक्त संसदीय समिति को भेजने की बात मान ली जाती,तो क्या बिगड़ जाता। अपने हर मुद्दे को मतों की कसौटी पर यह सरकार ले रही है, क्योंकि प्रचंड बहुमत जो है। लोकतंत्र में सर्वानुमति का सम्मान नहीं होगा तो सही बात भी गलत दृष्टिगोचर होगी,
और यही हो रहा है। यह दोनों तरफ की जिद,अहंकार,पीछे न हट पाने का हठ ही है जिसकी वजह से अभी तक अशान्ति का वातावरण है। इसे आपसी समन्वय से दूर करना होगा। इससे देश की एकता व अखण्डता को भी चोट पहुंचती है। क्या ही
अच्छा होता,अपना अहं त्याग कर सरकार सबको साथ लेकर चलती। छात्रों को भी इसमें हिस्सा नहीं बनने देना चाहिए था।अमित शाह का बयान-“एनआरसी पूरे देश में लागू हो कर रहेगा” और रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री का बयान कि,-“अभी एनआरसी पर कुछ भी नहीं हुआ।” इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान,बांग्लादेश के प्रताड़ित अल्पसंख्यक को नागरिकता देने को सीएए है। प्रताड़ित की सही परिभाषा,धार्मिक आधार पर होने को ले कर विवाद है औऱ बनाया भी जा रहा है,पर सब इसे ले कर किंकर्तव्यविमूढ़ हैं।
विपक्ष के भीे एक न होने के कारण,
एनडीए गठबंधन में भी मतैक्य न हो पाना, कुछ असामाजिक तत्वों का हिंसा में शामिल हो जाना,अपनी पढ़ाई को भूल विश्वविद्यालय के छात्रों का हिंसक हो जाना,पुलिस का गैरजिम्मेदाराना रवैया एवं मुस्लिम भाईयों द्वारा इस कानून को पूरी तरह से अपने विरूद्ध समझ लेना आदि सब कारणों से आज पूरे राष्ट्र में एक अजीब-सी असमंजस व ऊहापोह की हालत हो गई है। विरोध,हिंसा, प्रदर्शन थमने का नाम ही नहीं ले रहे। इसी का फायदा ले कर ही ओवैसी जैसे लोग सीएए,एनआरसी,एनपीआर को एक-दूसरे से जुड़ा बता कर लोगों को बरगलाने में सफल हो रहे हैं,जिससे हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं।
एक नेत्रहीन द्वारा हाथी के अलग- अलग अंगों को छू कर विभिन्न विचार ही तो सामने आएंगे। एक बार अकबर ने बीरबल को अविद्या का कोई नमूना पेश करने को कहा। बीरबल ने ४ दिन की छुट्टी ले कर एक मोची को डेढ़ फुट लंबी-आधा फुट चौड़ी जूती को हीरे जवाहरात से जड़ सोने-चांदी के तारों से सिलाई से तैयार करने को कहा।मुँहमांगा पैसा देने के साथ किसी को न बताने का ठोस आश्वासन लिया। तीसरे दिन जूती तैयार होने पर एक जूती अपने पास रखी, दूसरी मस्जिद में उछाल दी। मौलवी जी ने नमाज़ पढ़ने के रास्ते में इतनी बड़ी जूती देख कर सोचा,खुद अल्लाह नमाज़ पढ़ने आये व उन्हीं की छूट गई होगी। उसने जूती सिर पर रखी,माथे से लगाई व चाटा भी। यही बात सबको बताई तो सबने भी ऐसा किया। अकबर तक बात गई,देखते ही बोले-“यह तो अल्लाह की ही जूती है।” उन्होंने भी वैसा ही किया व मस्जिद में अच्छे स्थान पर रखने को कहा।
बीरबल छुट्टी खत्म होते ही दरबार में पहुंच उतरा हुआ मुँह ले कर खड़ा हो गया। जैसे ही अकबर ने पूछा-‘क्या हुआ ?’ बीरबल बोले-“हमारे यहाँ चोरी हो गई। हमारे परदादा की जूती चोर उठा कर ले गया,एक जूती मेरे पास है,यह देखो।” अकबर का माथा ठनका,तो मस्जिद से जूती मंगाई। एक जैसी,अल्लाह की समझ औरों की तरह मैंने भी चाटी। बीरबल बोले-“यही अविद्या है,पता कुछ नहीं, बस भेड़ चाल है।”
मुझे लगता है,नागरिकता कानून व अन्य के साथ भी ऐसा ही है। बहुमत का यह अर्थ तो कतई नहीं हो सकता कि अल्पमत को पूरी तरह से नकार दो विडम्बना देखिये,जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में पुलिस बिना अनुमति के घुस गई,छात्रों को पीटा और जेएनयू में कुछ नकाबपोश बाहरी तत्व कुछ छात्रों के साथ मिल कर रात तक उत्पात मचाते हैं,छात्रों-अध्यापकों को घायल कर देते हैं पर बाहर पुलिस का बड़ा जमावड़ा शांत रहता है। सारे उपद्रवी बाहर निकल जाते हैं, पुलिस हाथ मलती रह जाती है,ऐसा क्यों, कारण भी संदिग्ध लगता है। दोनों ही तो केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैं,पुलिस व इन पर केन्द्र का अधिकार,तो आखिर जिम्मेदार कौन ? तीन माह से फीस वृद्धि को ले कर चला जेएनयू का आंदोलन अब नागरिकता व पंजीयन में उलझ कर रह गया। असलियत में पढ़ाई में रुचि रखने वाले छात्रों का कितना बड़ा नुकसान है ये। इस पूरी कश्मकश में गिरती जीडीपी,बढ़ती मंहगाई दर,पिछले डेढ़ दशक में सबसे ज्यादा बेरोजगारी आदि मुद्दों पर कोई बात नहीं,कोई किसी तरह की कार्यवाही नहीं। आखिर देश की एकता, अस्मिता,गरिमा की कोई कीमत है या नहीं! एकता की परवाह किए बिना कब तक नागरिकता-नागरिकता खेलते रहोगे। कितना समय बर्बाद हो रहा है,देश दिन-प्रतिदिन कितना पीछे जा रहा है,इसकी परवाह किसको है।सब अपनी-अपनी ढपली,अपना-अपना राग अलाप रहे हैं। पक्ष-विपक्ष दोनों अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं,देश गर्त में जाता है तो जाए।
सब कुछ,देश का युवा,देश का भविष्य, देश की जनता प्रश्नचिन्ह बन कर मूक बन सरकार की ओर ही ताकने को मज़बूर हो,इन हालातों को मन मसोस कर,इस गरल को पीती रहेगी। जो हुक्मरान जनता को अपनी सही बात समझा न पाएं,भ्रमजाल को तोड़ न पाएं,सिर्फ अपना ही गुणगान करते रहें,दूसरे पक्ष को कमजोर मान डंके की चोट पर अपनी बात को मनवाने का दम्भ भरते रहें तो,समस्या बढ़नी ही है। सरकार किसी वर्ग विशेष की नहीं,पूरे देश की,पूरे राष्ट्र की होती है,यह अनुभव न कराएं तो परिणाम के जिम्मेदार भी वहीं होंगे। जनता कब किसका राजतिलक कर दे,सिंहासन तो बिछते भी हैं, उठते भी हैं।
परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक,धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।