कुल पृष्ठ दर्शन : 302

You are currently viewing जल ही जीवन है जगत्

जल ही जीवन है जगत्

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

******************************

ज से जल जीवन स्पर्धा विशेष…

जल से जीवन है जगत,जीवन है आधार।
चलो बचाएँ आज मिल,कुदरत इस उपहार॥

जल जीवन का संचरण,ईश्वर का वरदान।
रखें स्वच्छ निर्मल सलिल,बचे तभी जग जान॥

गिरि नद निर्झर अरु सरित,स्वच्छ रखें जलस्रोत।
सिंचित धरती श्यामला,उपजाऊ बन जोत॥

प्रतिबंधित हो कर्तना,गिरि नद तरु वन पाद।
रक्षण कर जल सम्पदा,या भोगो अवसाद॥

ख़ुद का दुश्मन मनुज अब,फँसा मोह निज लोभ।
औद्योगिक जीजिविषा,सलिल प्रदूषित क्षोभ॥

जहरीला जल है बना,जो रक्षक नित प्राण।
पिघल रहा है ग्लेशियर,जल बिन कैसे त्राण॥

सूख रही नदियाँ सभी,सीमित हुई जलधार।
डूब रही भू बाढ़ से,फँसा मनुज मझधार॥

बन्द करो बर्बादियाँ,जल जीवन आधार।
जल बिन जनता तरसती,बचा सलिल उपकार॥

जल जीवन जीवन्त बन,जीव जन्तु जग प्राण।
संजीवन जीवन सुधा,जल रक्षण कल्याण॥

कवि ‘निकुंज’ विनती सकल,बनो मनुज खुद्दार।
जल है तो जीवन जगत,है जीवन पतवार॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply