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साप्ताहिक ऑन लाइन कवि सम्मेलन कराया नई कलम ने

इंदौर (म.प्र.)।

तालाबंदी के चौथे चरण के इस दौर में जहां जीवन फिर से मुख्य धारा में गतिशील होने का प्रयास कर रहा है,तो ऐसे सामाजिक समीकरण में कविता के माध्यम से जनसामान्य तक ऐसा ही एक सार्थक प्रयास साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था नई क़लम ने किया। संस्था के इस ऑनलाइन सम्मेलन में देश के विभिन्न नगरों से कवि सम्मिलित हुए और हौंसला बढ़ाने के उद्देश्य से सकारात्मक रचनाओं का वाचन किया।


संस्था की ओर से कवि विनोद सोनगीर ने बताया कि,सम्मेलन में इस क्रम में कवियित्री शोभारानी तिवारी ने कविता पढ़ी-अनमोल है ये जिंदगी इसको बचाना है,तो सरिता चौहान ने पढ़ा-प्रार्थना में बिताया वक्त व्यर्थ नहीं होता। पवित्रा पंवार ने पढ़ा-छल है,प्रपंच है, कैसा ये मंच है,धर्म का आडंबर क्यों,दहशत जो घर-घर है | पूनम आदित्य ने पंक्तियां पढ़ी -मोह में जो मोहिनी है,काम में जो कामिनी है। श्रुति मुखिया ने सार्थक पंक्तियां पढ़ी- चलो आज खुद से गूफ्तगूं करके देखते हैं, कैद पंछियों को आज़ाद करके देखते हैं । तनिषा सांखला,संजय जैन बैजा़र व महेन्द्र जैन ने भी रचनाएं पढ़ीं।
विनोद सोनगीर की सतर्क करती पंक्तियां- आदमी जैसे खुद को ही मिटाना चाहता है, मौत का सामान जैसे खुद ही जुटाना चाहता है,सराही गई। रविराज टांक,शुभम चौहान, नितेश कुम्भकार,केतन कमाल,देव शर्मा, शशांक शर्मा ने भी रचनाएं पढ़ी | अध्यक्षता वरिष्ठ कवियित्री शोभारानी तिवारी ने की।संचालन कवि जितेंद्र राज ने किया। आभार श्री सोनगीर ने व्यक्त किया।

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