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हम बन जाएँ

ज्योति जैन ‘ज्योति’
कोलाघाट(पश्चिम बंगाल)
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काव्य संग्रह हम और तुम से….

चलो,
मैं और तुम
हम बन जाएँ,
बारिश की तरह
बूँद-बूँद मैं और
बूँद-बूँद तुम
मिलकर,
बरसात बन जाएँ।
बादलों में अठखेलियाँ कर
एक-दूसरे में खो जाएँ,
तुम मेरे कृष्ण
मैं तुम्हारी राधा,
बन जाऊँ
और हम
राधेकृष्ण हो जाएँ।
तुम्हारे अधरों पे
बाँसुरी-सी,मैं सजूँ,
तुम्हारी मुस्कान बन
मैं इतराऊँ।

तुम्हारी सुर-लय-ताल पर
मेरे सरगम हो,
तुम्हारे शब्द-गीत-संगीत की
हर लय पर मैं और
मेरी कविता के हर्फ़-हर्फ़ पर,
तुम दिखो।
मैं और तुम के बिना,
तुम्हारा गीत और
मेरी कविता,
तपती धरा-सी
विरहिनी,उदिग्न
वैधव्यता लिए,
प्यासी नदिया-सी
बहती मचलती
ठहरती बहकती,
रीती हुई स्याही
रात-सी चुगली,
करती प्रतीत हो।

चलो,
आज बरसात में
भीगते हुए
तुम्हारे गीत और
मेरी कविता को,
हमेशा-हमेशा
के लिए
एक कर दूँ।
जलवाष्प से बूँद और
बूँद से बरसात,
बनने तक
मैं और तुमको
हम-तुम बना दूँ॥

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