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हाँ,मैं शिखा हूँ

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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जीवन की बंदिशों से परे,
स्वयं में ही दस दिशा हूँ मैं
स्वच्छंद हूँ,स्वतंत्र हूँ,
सरिता के उन्माद से
किनारों की बेड़ियों से दूर,
खुद में समाए अपना गुरुर
चली चल दी हूँ,सामर्थ्य मेंl
उजालों के बाद आने वाली,
निशा हूँ मैं,हाँ मैं शिखा हूँll

कभी वसुधा का धैर्य हूँ,
कही लहरों की चंचलता
कभी बारिश की बूँद,
तो कभी अथाह सागर
किरदारों की कपोल,
कल्पनाओं में कहाँ रुकूँगीं
झुकने से कहां झुकुंगींl
मुट्ठियों मे कैद कर न सको,
हाँ,उसी रेत की प्रतिमा हूँl
शिखा हूँ मैं हाँ,मैं शिखा हूँ…

श्याम हूँ सरल हूँ निर्मल हूँ,
खुद ही खुद में आयाम हूँ
तुम्हारी सोच से पकड़,
रूढ़िवादी समाज से दूर
प्रकृति की पनाह में बैठे,
कैलाश पर्वत की शिला हूँ
तितलियों से उड़ती हूँ मैं,
जुगनू से चमकती हूँ मैं
अपनी नुमाइंदगी करती हूँ,
तुम्हारे खोखले दावों कीl
पोल की तरह स्याह किंत,
कभी तुम्हारी आधारशिला हूँl
मैं शिखा हूँ हाँ,मैं शिखा हूँ…ll

देखो उन्माद का प्रमाण हूँ,
सहनशीलता की कोख में
जीवन समर वेदी पर,
सर्वत्र समर्पित करने की
मचलती हुई वीरांगना हूँ,
ना रोको मुझे,ना रोक पाओगे
मेरे महफिल से जाते ही तुम,
तुम नि:सहाय ही हो जाओगे
देखो,मैं तुम्हारी जरूरतों की,
विशालकाय आधारशिला हूँl
शिखा हूँ मैं हाँ मैं शिखा हूँ…ll

चलो एक और कोशिश,
कर ली है मैंने
नाहक ही सही तुम्हारे लिए,
आह भर ली है मैंने
अपनी मृगतृष्णा में,
तुम भटके हुए मुसाफिर
नहीं समझ पाओगे,
इस बार भी मुझे
चलती हूँ मैं अपनी राह,
अविरत अविरल अविनाश
सदियों से चली आ रही,
नारी की लगती व्यथा हूँl
शिखा हूँ मैं,…हाँ,मैं शिखा हूँ…ll

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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