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तू साथ दे

शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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ये रूह जिस्म से अब निकलना चाहती है,
तू साथ दे बाँहों में पिघलना चाहती है।

यूँ तो शिक़ायत नहीं है मुझे जिंदगी से,
पर ये आज बस तन्हा जलना चाहती है।

कोई दरिया का समंदर तो बह जाए आज,
ये आँखें आज फिर से बहलना चाहती है।

मालूम नहीं क्या ख़लिश है जिंदगी में,
हर बंदिश आज फिर सम्हलना चाहती है।

खूब कहा किसी ने कि जाना सबको एक दिन,
हर रंजिश तेरे साथ टहलना चाहती है।

मेरे ख्वाबों का दिया भी बुझ सा रहा है,
ये बस एक बार ‘प्रज्ञा’ मिलना चाहती है॥

परिचयशिखा सिंह का साहित्यिक उपनाम ‘प्रज्ञा’ है। लखनऊ में 27अक्टूबर १९९७ को जन्मी और वर्तमान में स्थाई रुप से लखनऊ स्थित चिनहट में बसेरा है। शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ को हिंदी,इंग्लिश व भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। उत्तरप्रदेश निवासी शिखा सिंह ने इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में डिप्लोमा एवं गणित में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होना जारी है। कवियित्री के रूप में आप सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य है। लेखन खाते में ‘उर्विल’ काव्य संग्रह है,तो सम्मान-पुरस्कार में प्रमाण-पत्र तथा अन्य मंच द्वारा सम्मान हैं। ये ब्लॉग पर भी काव्य क्षेत्र में निरन्तर तत्पर हैं। विशेष उपलब्धि-कला,नृत्य,लेखन ही है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-स्वयं के व्यक्तित्व का उत्थान कवियित्री के रुप में करते हुए अपनी रचनाओं से लोगों को मनोरंजित-शिक्षित करना है। गुलज़ार को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘प्रज्ञा’ के लिए प्रेरणापुंज-महादेवी वर्मा हैं। इनकी विशेषज्ञता-काव्य है तो जीवन लक्ष्य-सफल व्यक्तित्व की प्राप्ति है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हमारा देश निरन्तर एक समृद्ध देश के रुप में उभर रहा है,यह अत्यंत गर्व का विषय है,और इस दिशा में हमारी मातृभाषा हिन्दी का सर्वोपरि स्थान है,परन्तु आजकल हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी भाषा को महत्व दिया जा रहा है, इसलिए हम सभी को अपनी भाषा के उत्थान के लिए सफल प्रयास करना होगा।

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