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विधाता का पश्चाताप

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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इक दिन मिला विधाता मुझको लिये हाथ में झोला,
और लरजते अधरों से वो धीरे से यूँ बोला।
जीवन में हैं कष्ट अनेक ताप और संताप बहुत है,
अच्छे कर्म कहाँ मिलते हैं जग में अब तो पाप बहुत हैं।

मैं यूँ बोला प्रभुवर तुम तो जग के भाग्य विधाता हो,
पालन-पोषण कर्ता-धर्ता तुम ही तो निर्माता हो।
समझ न आई बात प्रभु ये फिर कैसी लाचारी है,
और विलक्षण शक्ति आपका बोलो कैसे हारी है।

कहा विधाता ने-प्रियवर मैं भोग रहा निज पाप,
मानव की रचना करने का ये है पश्चाताप।
सृजन किया था मानव का तो मैंने आस लगाई थी,
नर-नारी के रूप में मैंने जोड़ी एक बनाई थी।

एक नेह की मूरत थी तो एक नेह का प्यासा था,
एक सरीखा दोनों को ही मैंने खूब तराशा था।
किन्तु धरा पर मानव ने तो अपनी राह बदल डाली,
नारी की तुम देखो जग में कैसी हालत कर डाली।

संस्कार की सारी बातें अब जीवन से चली गईं,
पीड़ित और प्रताड़ित अबला चौराहों पर छली गई।
कन्या का गर्भ गिराते हैं,वे कैसे अत्याचारी हैं,
उनकी अपनी माताएं भी भूल गए इक नारी हैं।

शिक्षा से भी दूर रखा फिर भोजन कपड़े नहीं दिये,
ये दहेज का दानव है जो अंतिम पल तक खून पिये।
पश्चाताप मुझे होता है क्यूँ ये रास रचाया था,
ऐसे मानव को बोलो मैं क्यूँ धरती पर लाया था॥

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर  में भी  निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री  अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में  प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जनचेतना है।  

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