ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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न जाने क्यों ?
दिल में आज
हलचल-सी मचने लगी है,
पथराई-सी निगाहें
किसी को देखने के लिए,
हठ करने लगी है।
ये कैसा एहसास है,
प्यारा-सा, मीठा-सा
मर्म को भेद रहा है,
ऐसा लग रहा है
जैसे सिर पर मेरे,
कोई हाथ फेर रहा है।
कहीं तू माँ तो नहीं!
जो बरसों पहले
मृत्यु का ग्रास बन गई थी,
बीच राह में
कितना रोया था मैं,
तू एकटक
देख रही थी मुझको,
ऐसा लग रहा था
मानो कह रही हो,-
‘मैं वापिस आऊॅंगी,
चुप कराने तुझको।’
मैं जानता हूँ,
तू यहीं कहीं है
मेरे आस-पास,
तू मुझे निहार रही है
कुछ आभास हुआ है,
अभी-अभी
तू मुझे दुलार रही है।
माँ मैं तेरे,
एहसानों का बदला
चुका तो नहीं पाऊॅंगा,
लेकिन श्रृद्धा करूंगा
जब तक जीऊॅंगा।
बस तू ऐसे ही,
हाथ फेरती रहना
सिर पर मेरे॥
परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।