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बोतल का जिन्न

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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शाम के समय सभी बुजुर्ग महिलाएं सोसायटी के बगीचे में लगी लम्बी बैंच पर बैठ जाती हैं। कुछ गपशप करती हैं, कुछ रसोई टिप्स बताती हैं, कुछ टी.वी. नाटक पर चर्चा करती हैं। तबियत खराब होने के कारण मैं काफी दिनों बाद आई तो अलाउद्दीन के चिराग की बात चल निकली। किसी ने कहा कल्पना भरी कहानी है। किसी ने कहा शायद ऐसा कभी संभव हो। आज की दुनिया में भला संभव कहां ?
मैंने कहा,-“मेरे पास है बोतल का साक्षात जिन्न।”
सोसायटी की सारी महिलाएं मेरी तरफ़ अवाक-सी देखने लगी, फिर एकसाथ बोलीं,-“कहां है ?”
मैंने दूर खड़ी अपनी बहू को इंगित कर कहा-“वो रही मेरी बहू। बोतल के जिन्न से कम नहीं। मेरे कहने की देर नहीं कि चीज हाजिर हो जाती है। मैं कहती हूँ मौसम बड़ा अच्छा है, तो पकौड़े तैयार। गर्मी लग रही है तो ए.सी. लगवा दिया। साउथ इंडियन खाने का मन है तो शाम को डोसा बना दिया। फिर हुई ना बोतल की जिन्न। कहानी का जिन्न काल्पनिक था या वास्तविक, मैंने देखा नहीं। मेरी बोतल का जिन्न हकीकत में है। सच है ना।” “ऐसा जिन्न सभी को मिले।”
यह कहकर सभी हँसने लगी और मैं अपनी बहू पर गर्व महसूस करने लगी।

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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