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नारी

देवेन्द्र कुमार राय
भोजपुर (बिहार) 
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नारी नर की जननी है,
और धरा की प्रेम प्रतीक।
पल्लवित कण-कण इससे,
हर पग जग लेता है सीख।
मूल में ममता मानवता की,
आँचल में स्नेह की धारा है
संस्कृति की अविचल गाथा,
और संबल दीप सहारा है।
धैर्य धरा प्रतिबिंबित होता,
मुस्कान मनोवांछित फल पाए
जब नारी घूंघट डाले,
बहू के रुप में आँगन आए।
बिन कन्यादान पुरुष को,
पुण्य कहां मिल पाता है
नारी गांठ जीवन की है,
इससे ही कुलों का नाता है।
नारी पोषण की औषधि को,
सदा अपने दामन ले चलती है
अपने नेह निमंत्रण से जग का,
दारुण दु:ख वो हरती है।
माँँ बन नारी अनुशासन की,
निष्कंटक राह दिखाती है
जीवनपथ के गुरूकुल में,
गुरु बन पाठ पढा़ती है।
अमर सुधा अम्बर से बरसे,
जहां नारी पूजित होती है
मरुभूमि में होती हरियाली,
जहां नारी अपना पग धोती है।
नारी शासन है नारी प्रशासन है,
नारी ही केवल लय है
नारी ज्ञान है नारी सम्मान है,
हार नहीं नारी केवल जय है॥

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