‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ स्पर्धा विशेष…………………
नारी को मत बाँधो जंजीरों से,
रीत-रिवाज की प्राचीन बंदिशों से।
खोलो अब तो सारे बँधन पुराने,
लेने दो श्वाँस अब उसे खुली हवाओ में।
अपनी आजादी का दायरा जानती है,
मर्यादा का आवरण वह पहचानती है।
संस्कृति व संस्कारों की ओढ़,ओढ़नी,
वह हर लकीर मर्यादा की ख़ूब मानती है।
जब होगी शक्तिशाली देश की नारी,
हो जाएगी हल सारी समस्याएँ हमारी।
उसकी ताकत को तुम कभी कम न आँको,
एक अकेली अबला,सब पर है भारी।
माँ दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती का रूप है,
वह वंदनीय,दैवी का ही स्वरूप है।
माँ काली का विकराल रूप धर ले,
वह दया,क्षमा,और मातृ-रूपेण है।
कहती ‘हेमा’ उसे उड़ान भरने दो,
अपनी क्षमता की पहचान करने दो।
रचेगी वह धवल इतिहास नया एक,
अपनी ख्वाइशों को परवान चढ़ने दो।
रानी लक्ष्मीबाई की तरह वीर है,
जानकी जैसी संयमी व धीर है।
कल्पना चावला-सी ऊँची उड़ान है,
वह सशक्त और आत्मनिर्भर शीर है॥
परिचय – हेमलता पालीवाल का साहित्यिक उपनाम – हेमा है। जन्म तिथि -२६ अप्रैल १९६९ तथा जन्म स्थान – उदयपुर है। आप वर्तमान में सेक्टर-१४, उदयपुर (राजस्थान ) में रहती हैं। आपने एम.ए.और बी.एड.की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र-अध्यापन का है। लेखन विधा-कविता तथा व्यंग्य है। आपकी लेखनी का उद्देश्य- साहित्यिक व सामाजिक सेवा है।