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सड़क बेचारी

डॉ.दिलीप गुप्ता
घरघोड़ा(छत्तीसगढ़)
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सड़क बेचारी गूंगी दुखियारी
देखती है चुपचुप,
आदमी का दु:ख..
आदमी की भूख…,
प्रशासन को चुप्प…
और महसूसती है हवा का रुखl

गिरगिट की तरह घड़ी-घड़ी
रंग बदलता आदमी,
बोराया;कुकुर-सा भौंकता
भागता काटता आदमी,
एक-दूजे को चीरते-फाड़ते
औ चीरते-फाड़ते आदमी,
चुप्प सब देखती है
वक्त की मारी,
गूंगी बन रहती है सड़क बेचारीl

दांतों ने साथ छोड़ा
झुर्रियों ने नाता जोड़ा,
घावों से भर गई
दिल से सिहर गई,
गिनती आखरी साँसें
फिर भी कुचल रही,
वैसे ही जब जवान थी
दुनिया की शान थीl

सड़क बेचारी आफत की मारी
अब तो और भी,
गाड़ी पर गाड़ियाँ
जूते और जूतियाँ,
जिसने भी जब चाहा
छाती पर थूक दिया,
खोद दिया पाट दिया…
अपना मल भी दिया..,
आँसू जब धार बने
रास्ते जब डूब जाएँ…,
न्यूज मुँह फाड़ने लगे-
कागजों मे पोंछ दिया।

सड़क भी आदमी की
रुलाया आदमी ने,
बनाया आदमी ने
बिगाड़ा आदमी ने,
लाश भी सड़क की
पचाया आदमी ने,
कागजों ही कागजों
कमाया आदमी ने।

सड़क बेचारी
एक अबला नारी,
रोई न गाई…न रपट लिखाई
न छाती पर दनदनाते,
मंत्री को सुनाई
पिसती है…सहती है,
सुबकती हुई
कुचलती इंसानियत,
कुचलत़ा इन्सान
मदमाती हैवानियत,
औ नग्न नाचता हैवान।

सड़क बेचारी स्वजनों की मारी
कभी उसकी गोद में…,
छाती में..भर दिए अंगार
किसी की किसी ने,
अंगार आदमी के
छाती भी आदमी की,
गिरा भी आदमी और
गिराया आदमी ने,
कटा भी आदमी और
काटा भी आदमी था।

सुनी उसने रातों
चीखती पीड़ाएं,
मिले-जुले बुलंद
ठहाकों की गर्जना,
चीखें भी आदमी की
हँसा भी आदमी था,
सुबह सड़क ने बीने
जो चूड़ियों के टुकड़े,
औ फटे-नुचे चीथड़े
वो भी आदमी के,
ट्रेलर के पहिये में
कूद गई फूल को,
छितराई पाँखुरिया
समेटे सड़क ने थे,
सहस्त्रों नयन जल से
भीगी भी सड़क ही थी,
बूटों औ रंगरूटों से
कुचली भी सड़क ही थी,
रोया भी आदमी औ
रुलाया आदमी ने,
बिखरी भी आदमी औ
बिखेरा आदमी था।

सड़क बेचारी
सोंचती है आएगी,
हर एक की बारी
गाजर-मूली की तरह,
कटेगा आदमी
बिन आए मौत,
मरेगा आदमी
आँखों से देखेगी,छाती से फटेगी,
दिल भर रोएगी
होंठों को सी लेगी।

जिन्दा आदमी के
अंतस की मौत,
पसलियों के कटहरे में
खड़ी मर्यादा की सौत,
ना जाने कब
जिंदगी को समझेगा आदमी,
सड़क बेचारी।
आस में…विश्वास में
कभी न कभी,
आदमी के भीतर जाग होगी ही
तब जिन्दगी को समझेगा जिंदगी॥

परिचयडॉ.दिलीप गुप्ता का साहित्यिक उपनाम `दिल` है। १७ अप्रैल १९६६ को आपका जन्म-घरघोड़ा,जिला रायगढ़ (छग) में हुआ हैl वर्तमान निवास घरघोड़ा स्थित हनुमान चौक में ही हैl छत्तीसगढ़ राज्य के डॉ.गुप्ता ने एम.डी.(मेडीसिन)और डीएसी की शिक्षा हासिल की हैl कार्यक्षेत्र में आप निजी चिकित्सा कार्य करते हैंl सामाजिक गतिविधि में अग्रणी होकर असहायों,गरीबों,बीमारों की हरसम्भव सहायता के साथ ही साहित्यिक सेवाएं-जन जागरण में भी तत्पर रहते हैं। आपकी लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल तथा कविताएं हैंl प्रकाशन में खुद की `हे पिता`(ओ बाबूजी)पुस्तक व करीब 20 संकलनों में रचनाएं प्रकाशित हुई है। आपको प्राप्त सम्मान में-कला श्री २०१६,डॉ.अब्दुल कलाम सम्मान सहित साहित्य अलंकरण २०१६ और दिल्ली से `काब्य अमृत` सम्मान आदि ख़ास हैंl २०१६ में कवि सम्मेलन में `राष्ट्रीय सेवा सम्मान` ४ बार प्राप्त किया है। डॉ.दिलीप की लेखनी का उद्देश्य समाज और संसार से बुराइयों को समाप्त कर अच्छाइयों से जन-जन को वाकिफ कराना है।

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